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पर्यावरण का पाठ


सेवा से जुड़ा रहेगा। उसका नाता ओरण से है। ओरण इतना महत्वपूर्ण नहीं होता तो वह अपने धर्म को दांव पर नहीं लगाता।

इसलिए जो आपने कहा है वह सही है कि पर्यावरण उन दोनों को जोड़ के रख सकता है। बटे हुए समाज को भी एक तालाब जोड़ कर रख सकता है क्योंकि वही सबको पानी देगा। इसलिए उसे गंदा नहीं होने देना है तो उसके जो भी नीति नियम हैं उन्हें मानना पड़ेगा।

पर्यावरण-तंत्र को समझने वाले लोगों ने बहुत ही प्रामाणिक तौर पर यह कहा है कि प्रकृति का अपना चेक और बैलेंस होता है। और इसके अंतर्गत यदि कोई भी प्रजाति अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करती है तो उसका अंत हो जाता है यानी कि एक सीमा के पश्चात हर प्रजाति का अवसान होता है। और अब तक के इतिहास में प्रकृति में ऐसा ही घटित हुआ है जो इस तर्क का पुख्ता साक्ष्य प्रदान करते हैं कि जब भी कोई प्रजाति, प्रकृति की केरिंग कैपेसिटी से ज़्यादा हो जाती है तो अंतर-प्रजातीय प्रतिद्वंद्व के फलस्वरूप स्वयं के विनाश की ओर ही अग्रसर होती है। परंतु इसके साथ-साथ एक और तर्क यह भी है कि चूंकि मानव में बुद्धि है, क्षमता है चीज़ों को जानने समझने और विश्लेषण करने की; मानवीय विकास प्रक्रिया में उस तरह का मुकाम नहीं आएगा। फिर भी आज जिस तरह की आपातकालीन परिस्थितियों में हम घिरे हैं उसमें इस तरह के तर्कों के बारे में आपका सोचना क्या है?

नींद में चलना एक बीमारी है। सोते-सोते कोई भी उठ जाता है और चलने लगता है। उसके लिए वह बिल्कुल सहज है पर दूसरों को देख कर लगता है यह कैसी बेवक़ूफ़ी हो रही है। मैं सोचता हूं कि समाज के इतिहास में कई क्षण आते हैं जब वह वास्तव में नींद में चलने लगता है। कुछ लोगों को दिखाई देता है कि यह नींद में

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