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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२३७

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अनुपम मिश्र


चल रहा है। इसको जागना चाहिए। इस समय का दौर एक सोए हुए समाज का है जो चल रहा है। वह किसी भी समय छत पर से नीचे गिर सकता है। मुंडेर से टकराकर। पर उसे इतना आत्मविश्वास है। उसको लगता है कि वह ठीक सीढ़ियों से चढ़ेगा और उतरेगा और बाद में अपने बिस्तर पर आकर विश्राम करेगा। तो ऐसा नहीं है कि ऐसी दुर्घटना नहीं होगी। इसको हम दूसरे अर्थों में यह भी कह सकते हैं कि कई बार हमें विज्ञान पर अंधश्रद्धा हो जाती है या अंधविश्वास जो विज्ञान के स्वभाव से परे है। पर विज्ञान और वैज्ञानिक भी अंधविश्वास का आधार बन सकते हैं। तभी हमको लगता है कि हम कितनी भी अत्त (अति) करें, हम तो बच जाएंगे। कोई-न-कोई हल निकल आएगा। पहले सारा पानी ट्यूबवैल लगा कर उलीच कर फेंक दो। विज्ञान पानी दे देगा। एक नदी का पानी दूसरी नदी के क्षेत्र में ले आएगा। एक नदी सुखा दें हम, विज्ञान, तकनीक दूसरी नदी ले आएंगे। पिछले कई साल से सुन रहे हैं कि सारी नदियों को जोड़ देंगे हिंदुस्तान की। बाढ़ का पानी अकाल तक ले जाएंगे और शायद अकाल का सूखापन बाढ़ के इलाके में आ जाएगा। सूखा गीले में बदल जाएगा और गीला सूखे में। यह अंधविश्वास है आज के सबसे पढ़े-लिखे लोगों का। तो इससे कुछ होता नहीं है। इसलिए हर एक समय में समाज में ऐसी समझदारी, विवेक, आधार चाहिए जिससे वह देखे कि कब वह अपनी कुल्हाड़ी से न सिर्फ पेड़ काट रहा है बल्कि उसी तरफ़ बैठा है। दूसरा कब उसने पेड़ काटना बंद कर अपना पैर काटना शुरू किया है। अपने हाथ से अपनी कुल्हाड़ी से अपना पैर काटा। यह इस समय का बहुत बड़ा लक्षण है और उसको यह दिखाई नहीं देता। वह नींद में चल रहा है और अपने आपको जगा हुआ मान रहा है। ऐसे में प्रकृति ज़रूर झटका देती है। अकाल बाढ़ वगैरह उसके झटके हैं याद दिलाने के

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