पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२४३

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अनुपम मिश्र


यूकिलिप्टस (जिसकी वजह से हिमालय में जल-स्तर नीचे चला गया है) और Prospis Juliflora यानी विलायती बबूल (जो कि बावलों बवाल के रूप में जाना जाने लगा है)। इस तरह के बिना सोचे-समझे किए गए introduction हमारी जैव-विविधता के लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा है और चूंकि भारत एक जैव-विविधता संपन्न देश है हमारी ज़िम्मेदारी इस संपदा को संरक्षित करने की और बढ़ जाती है। ऐसे में इस तरह के ख़तरों से आपके विचार में कैसे निपटा जाए जिससे कि वर्तमान समय और आने वाले समय में इनकी वजह से कोई बहुत गहरा संकट न पैदा हो?

अंग्रेज़ों के आने से पहले तक जिन्हें हम अंग्रेज़ी के अनुवाद के कारण आदिवासी वनवासी कहते हैं, उनके बड़े-बड़े राज्य थे। मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान वगैरह में उनके राज्य थे, उनके जंगल भी थे। अचानक उससे वे बेदखल कर दिए गए। वे अपने ही आंगन में पराये हो गए। उसके बाद समय-समय पर कुछ करुणा, कुछ उद्धार, इस तरह से इनके बीच कुछ काम हुआ वन के प्रश्नों को लेकर। कभी उनको मालिक मान कर काम नहीं किया कि ये एक लड़ाई हार गए थे लेकिन मालिक तो ये ही थे। आज भी आप देखेंगे चाहे सर्वोदय हो चाहे कोई ईसाई मिशनरी हो राष्ट्रीय स्वयं सेवक के लोग हों जो कोई भी वनवासी क्षेत्र में काम करने जाते हैं उद्धार की भावना से ही जाते हैं। उन्हें मालिक मान कर नहीं जाते। 300 साल पहले हमारे आपके पुरखों में से कोई-न-कोई इन वनवासी राजाओं के यहां सलाहकार रहा होगा, नौकर रहा होगा दरबार में। पर इनका मालिक नहीं था। लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद इन वनों का इस्तेमाल शुरू हुआ। सबसे पहले रेल के लिए इनको काट के नीचे लाया गया था। अगम्य इलाकों में उन्होंने रेल की पटरियां बिछाईं।

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