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अकाल: अच्छे कामों और विचारों का भी

आग लगने पर कुआं खोदना पुरानी कहावत है।

अकाल की आग लगी। सरकार और समाज ने भी कुआं खोदना शुरू किया। कहावत में तो कुआं खोदने पर शायद पानी भी निकलता है पर इस बार अकाल में कुआं खोदने पर पानी नहीं मिला। टैंकरों से, रेलों से और तो और गुजरात में पानी के जहाज़ से पानी पहुंचाया गया। सिर्फ हवाई जहाज़ रह गया।

जिस 21वीं सदी में भारत को ले जाने के लिए हमारे सभी दलों के सभी राजनेता पिछले 20 बरस से बहुत आतुर दिख रहे थे उस 21वीं सदी का यह पहला अकाल है। और जिस सूचना की क्रांति का इतना हो हल्ला हो रहा था, इस क्रांति के महान दूतों को, महान सपूतों को बिना सूचना दिए देश के आधे हिस्से में अकाल 'चुपचाप' उतर आया है।

पर अकाल कभी चुपचाप नहीं आता। वह बिना तिथि बताए आने वाला अतिथि नहीं है। दिसंबर के अंत में जब मानसून ने अपने को समेटा था तब बहुत से हिस्से में उसने यह जानकारी, यह सूचना भी बरसा दी थी कि कहां-कहां औसत से कम वर्षा हुई है। पर कुछ अपवाद छोड़ कर न तो धरती के बेटों ने, किसानों ने और न कलेक्टरों ने इस सूचना को बटोर कर रखा। सब जगह गांवों में, खेतों में, शहरों में पीने का पानी,