पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२५१

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अनुपम मिश्र


अब इतनी नमी है कि आप अपने फावड़े कुदाल का प्रयोग करके मिट्टी का काम कर सकते हैं। इसलिए इस दिन को रखा गया। अब जब एक शुभ दिन है, अच्छा मुहूर्त है तो उसका व्यवहार में यह उपयोग हुआ कि भई, आज के दिन के लिए क्या पूछना। यह तो बहुत ही अच्छा दिन है काम शुरू करने के लिए। तो फिर धीरे-धीरे लोगों के बीच उसका नाम प्रचलित हुआ अनपूछी ग्यारस। आज पूछने की भी ज़रूरत नहीं, ऐसी मान्यता बन गयी। बाक़ी के लिए तो पंडित जी के पास एकाध बार पूछना पड़ेगा। कागज़ पत्तर दिखाने पड़ेंगे कि हम यह काम करना चाहते हैं, महाराज बताओ कौन सा दिन ठीक है। पर इसको इस व्यवस्था से भी मुक्त करके इतना व्यापक कर दिया तो मुझे लगता है कि वह एक व्यावहारिक दिन था। तो उसको मुहुर्त माना कि आप बस काम शुरू कर दीजिए।

एक बात और कि किसान समाज के फुर्सत का दिन भी वही है। एक फ़सल कट चुकी। किसान के पास थोड़ी समृद्धि आ गई है। उसके पास अब थोड़ा वक्त भी है। अगली फ़सल बोने से पहले समय भी है और साधन भी हैं। समय है इसलिए बिना पूछे अच्छा काम शुरू करो। समाज को अच्छे कामों में लगाना है तो कोई-न-कोई प्रेरणा देनी पड़ती है।

इसलिए एक दिन इस कोने से उस कोने तक तय हो गया। पूरे देश के पंचांग अनपूछी ग्यारस को इसी रूप में रखते हैं और अपने लोगों से यह कहते हैं कि आज के दिन आपको कोई भी अच्छा काम करना हो, बेझिझक शुरू कर दीजिए। एक तरह का आदेश भी है कि यह अच्छा काम है। शुरू करो और जल्दी ख़त्म करो। निश्चित भी कर दिया कि भगवान साथ हैं।

यह सब भी इसी तरह जुड़े हैं कि समाज के उस तरह के व्यवहार में जो सबसे अनुकूल दिवस हो उनमें ये करना है। फिर थोड़ा बहुत गणित

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