ज्ञान मिलता रहा है। यह भी मान्यता रही है कि इसे बेचना नहीं है। इसको पैसे के काम में मत लगा देना। अगर आप को कुएं की ज़रूरत है तो मैं दो सौ से कम में नहीं बताता ऐसा लालच मत करना। श्रद्धा से जो मिल जाए बस उतना लेना। ये जो टोटके किए कि इसे बेचोगे तो यह लुप्त हो जाएगा, ये इसलिए किए गए कि ऐसे ज्ञान को रखने वाला अपने ज्ञान को बेचे नहीं। इसे समाज के काम में लगाए और यह भी देखा कि वह भूखा भी नहीं मरे। जिसकी सामर्थ्य 51 रुपए देने की है वह 51 रुपए देगा। कोई 101 देगा, कोई 251 दे देगा। तो उसको कुछ-न-कुछ अपनी जीविका चलाने के लिए भी मिले। लेकिन वह इसको बेचने की दुकान न लगाए।
राजस्थान में और ख़ासकर मरुभूमि में एक शब्द है जमानो। ज़माने से बना है। लेकिन वह दुनिया के अर्थ में नहीं है। आने वाली परिस्थिति अच्छी होगी। फ़सल के दिन अच्छे होंगे। इस शब्द से जमानो शब्द निकलता है। और यह बहुत ही वैज्ञानिक पद्धति थी कि पानी पूरा बरस गया। जिस देश में प्रकृति की तरफ़ से पानी की एक निश्चित ऋतु या समय तय है। अब उसके बाद बारिश नहीं होने वाली। तो यह एक कितना बड़ा वैज्ञानिक संगठन था समाज का कि हर गांव में सब लोग सितंबर-अक्टूबर में नवरात्रों के आसपास तालाब के पास आएंगे। वहां एक विशेष व्यक्ति तालाब की पाल पर खड़ा होकर उस तालाब में कितना पानी भरा है, यह देख कर अपने सब लोगों को बता सके कि आने वाला दौर अच्छा होगा या आने वाला ज़माना खराब होगा। भोपा जी यह भविष्यवाणी करते थे। वे कोई टोटके के रूप में नहीं करते थे। जल स्तर देख कर ही करते थे। तालाब आधा भरा है कि पूरा भरा है। अपरा चल दी, चादर चल दी तो ख़ूब पानी है। खूब पानी का मतलब है फ़सल भी अच्छी होगी। अब कोई बड़ी दुर्घटना हो जाए वह अलग बात है। लेकिन कृषि समाज का मुख्य आधार है
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