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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२५६

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पर्यावरण का पाठ


बनते रहते हैं। उनमें फ़र्क़ होगा कि यह केवल पानी पीने का है तो उसमें नहाना मना है। इस तरह का आरक्षण अलग-अलग करके रखा गया था। उपयोग के आधार पर। छतीसगढ़ में भी निस्तारी के तालाब अलग मिलेंगे। नहाने के अलग मिलेंगे। स्त्रियों के लिए अलग, पुरूषों के लिए अलग। राजस्थान में तालाबों में स्त्रियों के नहाने के लिए विशेष इंतज़ाम रखा जाता था। उनको पानी में तैरने का पूरा आनंद भी मिले और वे बाक़ी हिस्से से कटी भी रहें। जालीदार परकोटा, सीढ़ियां, उसमें कूद कर नहाने तैरने का पूरा प्रबंध रखा जाता था। वे बाहर देख सकें। बाहर के लोग उनको न देख सकें। इसका बहुत अच्छा इंतज़ाम बीकानेर के कोलायत नामक तालाब में मिलेगा। छत्तीसगढ़ धान का इलाक़ा है। धान को पानी चाहिए। वर्षा के अलावा भी सिंचाई चाहिए तो बहुत सारे ऐसे तालाब हैं। उनको सिंचाई के लिए बनाया गया। फिर मछली पालन का चलन है। मरुभूमि में नहीं है वह। मछली के तालाबों में अपरा वग़ैरह सब अलग ढंग से बनेंगी। उसमें नीचे एक नाली बनाते हैं जिससे एक बार वर्ष में पूरा तालाब ख़ाली कर दिया जाए। मछली की बढ़त के लिए यह ज़रूरी है कि एक बार तालाब का तल सूख जाए, उस पर धूप पड़ जाएं। हानिकारक कीटाणु वग़ैरह नष्ट हो जाएं। फिर से उसमें पानी भरा जाए। तब मछली बहुत अच्छी पनपती है। इसे एक फ़सल की तरह देखते हैं। उनके रीति-रिवाज़ हैं। आखरी फ़सल को पकड़ने के भी अलग नियम है। उसमें पूरा गांव इकट्ठा होता है। मछली के ढेर लगते हैं। सब के नाम हर परिवार के। फिर तालाब ख़ाली कर दिया जाता है। उसको धूप दिखाई जाती है। फिर वो दोबारा भरता है। जहां बहुत तेज़ पानी गिरता है वहां तालाब अलग-अलग ढंग से भरते हैं। उनकी अपरा अलग ढंग से बनाएंगे, पानी की मात्रा को देख कर, मिट्टी की सहनशक्ति देख कर संरचनाएं बदलती हैं।

तालाब और पर्यावरण की जितनी भी कहानियां हैं वे तो एक तरह से

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