पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अनुपम मिश्र


समाज को बार-बार उससे बांधे रखने के लिए हैं। उसको प्रेरणा देने के लिए हैं। हर बार यह कहो कि भाई तालाब बनाओ। तो दो लोग सुनेंगे दो लोग नहीं सुनेंगे। अनसुनी कर देंगे। लेकिन तालाब बनाने के अच्छे क़िस्से अगर समाज में घूमते रहें, चल रहें हों तो बचपन में कोई काका से सुनेगा, कोई काकी से सुनेगा, कोई दादी से सुनेगा। आदेश न होकर वह एक सहज प्रक्रिया हो जाती है। नहीं तो किसी एक उम्र में आदेश मिलेगा हमको, तब हम जाएंगे अच्छे काम करने। वातावरण बनाने के लिए यह एक बहुत बड़ा काम होता था। अपने यहां तालाब की कुछ ऐसी कहानियां प्रचारित हुई हैं जो किसी को भी रुला सकती हैं। और उसने अगर अभी तालाब बनाने के बारे में न सोचा हो तो वह तालाब बना बैठेगा।

केवल पर्यावरण की नई संस्थाएं खोल देने से पर्यावरण नहीं सुधरता। सिर्फ़ थाने खोलने से अपराध कम नहीं हो जाते। ये कथाएं समाज को चलाए रखती हैं, अच्छे काम सरल बनाती हैं, बुरे काम कठिन। यह पर्यावरण शिक्षा भी है, पर्यावरण-चेतना भी है, पर्यावरण का पाठ्यक्रम भी है। लिखत-पढ़त वाली सब चीजें औपचारिक होती हैं। सब कक्षा में, स्कूल में बैठकर नहीं होता। इतने बड़े समाज का संचालन करने, उसे सिखाने के लिए कुछ और ही करना पड़ता है। कुछ तो रात को मां की गोदी में सोते-सोते समझ में आता है तो कुछ काका, दादा के कंधे पर बैठ चलते-चलते समझ में आ जाता है। यह उसी ढंग का काम है जीवन शिक्षा का।

238