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मन्ना: वे गीत फ़रोश भी थे


थोड़ा बहुत लिखना-पढ़ना मन्ना से ही सीखा पर उन पर कभी कुछ लिखा नहीं। मन्ना को गए आज 15 बरस हो रहे हैं, लेकिन उनके बारे में कभी 15 शब्द भी नहीं लिखे।

कारण कई थे। पहला तो वे ख़ुद थे। कुछ के लिए वे ज़रूर 'गीत फ़रोश' रहे होंगे, पर हमारे लिए तो वे बस पिता थे। हर पिता पर उसके बेटे-बेटी कुछ लिखें-यह उन्हें पसंद नहीं था। कुल मिला कर हम सबके मन में भी यह बात ठीक उतर गई थी। मन्ना ने एकाध बार बहुत ही मज़े-मज़े में हमें बताया था कि कोई भी पिता अमर नहीं होता। पिता के मरते ही उसके बेटे-बेटी उनकी याद में कोई स्मारिका छाप बैठें, ख़ुद लेख लिखें, दूसरों से लिखाते फिरें, उनकी स्तुति, योगदान को स्थाई रूप देने के लिए उनके नाम से कोई संस्था, संगठन खड़ा कर दें-यह सब बिल्कुल ज़रूरी नहीं होता। उनकी मृत्यु के बाद हमने इस बात को पूरी तरह निभाया, न ख़ुद लिखा, न लिखवाया। दूसरा कारण उनकी एक कविता थी- 'क़लम अपनी साध, और मन की बात बिल्कुल ठीक कह एकाध।' क़लम साधना, मन की एकाध बात कहना कठिन काम है। फिर कवि नामक इस कविता की आगे की पंक्तियां और भी कड़ी शर्त रखती हैं: यह कि तेरी भर न हो, तो कह, और बहते बने सादे ढंग से तो बह।