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मन्ना: वे गीत फ़रोश भी थे


यहां बदरी चाचा के पूरे घर में, आंगन में, कमरों के फ़र्श में सभी जगह पूरी भव्यता से फैला मिलता। बदरी चाचा के घर ऐसे मौक़ों पर बड़े-बड़े लोग जुटते थे, पर हम उन सबको उस रूप में पहचानते नहीं थे। बदरी चाचा सचमुच विशाल थे हम सबके लिए। कभी-कभी वे हम सबको हैदराबाद से थोड़ी दूर बसे शिवरामपल्ली गांव ले जाते। वहां तब विनोबा का भूदान आंदोलन शुरू हुआ था। बदरी चाचा अच्छे फ़ोटोग्राफ़र भी थे। उस दौर में उनके द्वारा खींचे गए चित्र आज भी हमारे मन पर ज्यों के त्यों अंकित हैं-काग़ज़ वाले प्रिंट ज़रूर कुछ पीले-भूरे और धुंधले पड़ गए हैं।

मन्ना कविता लिखते थे, पढ़ने भी लगे थे, शायद रेडियो पर भी। लेकिन हमें घर में कभी इसकी जानकारी मिली हो-ऐसा याद नहीं आता। तब तक घर में रेडियो नहीं आया था। हैदराबाद रेडियो स्टेशन से हर इतवार सुबह बच्चों का एक कार्यक्रम प्रसारित होता था। हम एकाध बार वहां मन्ना के साथ गए थे। ऐसे ही किसी इतवार को नंदी जीजी ने लकड़हारे की कहानी माईक के सामने सुना दी थी। जिस दिन उसे प्रसारित होना था, उससे एक दिन पहले मन्ना एक रेडियो ख़रीद लाए थे। रेडियो सेट मन्ना की कविता के लिए नहीं, जीजी की कहानी सुनाने के लिए घर में आया था-इसे आज रेडियो स्टेशन में ही काम करने वाली नंदिता मिश्र भूली नहीं हैं।

हैदराबाद से मन्ना आकाशवाणी के बंबई केंद्र में आ गए थे। तब मैं तीसरी कक्षा में भर्ती किया गया था। उस स्कूल में हमें दूसरों से, अध्यापकों के व्यवहार से पता चला था कि हमारे पिताजी को घर से बाहर के लोग भी जानते हैं। क्यों जानते हैं? क्योंकि वे कविताएं लिखते हैं। हमारे मन्ना कवि हैं!

कवि कालदर्शी होता है? हमें नहीं मालूम था। कल क्या होगा बच्चों

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