तालाबों, बांधों ने वहां सूखी पड़ी पांच नदियों को 'सदानीरा' का दर्जा वापस दिलाया।
अच्छे विचारों से अच्छा काम हुआ और फिर आई चुनौती भरे अकाल की पहली सूचना। नदियों में, तालाबों में, कुओं में वहां तब भी पानी लबालब भरा था। फिर भी इस क्षेत्र के लोगों ने, किसानों ने आज से सात-आठ माह पहले यह निर्णय किया कि पानी कम गिरा है इसलिए ऐसी फ़सलें नहीं बोनी चाहिए जिनकी प्यास ज़्यादा होती है। तो कम पानी लेने वाली फ़सलें लगाई गईं। इसमें उन्हें कुछ आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा पर आज यह क्षेत्र अकाल के बीच में एक बड़े हरे द्वीप की तरह खड़ा है। यहां सरकार को न तो टैंकरों से पानी ढोना पड़ रहा है न अकाल राहत का पैसा बांटना पड़ा है। लोग, गांव किसी के आगे हाथ नहीं पसार रहे हैं। उनका माथा ऊंचा है। पानी के उम्दा काम ने उनके स्वाभिमान की भी रक्षा की है।
अलवर में नदियां एक दूसरे से जोड़ी नहीं गई हैं। यहां लोग, गांव, नदियों से, अपने तालाबों से जुड़े हैं। यहां पैसा नहीं बहाया गया है, पसीना बहाया है, लोगों ने और अच्छे काम और अच्छे विचारों ने अकाल को एक दर्शक की तरह पाल के किनारे खड़ा कर दिया है।
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