पास अंग्रेज़ की ईस्ट इंडिया कंपनी थी जो यहां उच्च शिक्षा का काम करने नहीं आई थी, साफ़-साफ़ व्यापार करने या शुद्ध हिन्दी में कहें लूटने के लिए आई थी। इसलिए उसको उच्च शिक्षा का कोई केंद्र खोलने की ज़रूरत ही नहीं थी। लेकिन उसने 1847 में हरिद्वार के पास रुड़की नाम के एक छोटे से गांव में देश का पहला इंजीनियरिंग कालेज खोला था, उस समय शायद रुड़की की आबादी अभी तक मैं ढूंढ़ नहीं पाया हूं 700 या 750 लोगों की रही होगी।
वह पहला इंजीनियरिंग कॉलेज था हमारे देश में और उसके खुलने का एकमात्र कारण था जो मैंने अभी संकेत किया कि जिस लोक बुद्धि को हम लोग भूल चुके हैं, वह उनके सामने मजबूरी में आ गई थी। प्रसंग यह था कि वहां अकाल चल रहा था। लोग मर रहे थे। लोग मरें इससे ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज़ों को कोई अंतर नहीं पड़ने वाला था। लेकिन एक सहृदय अंग्रेज अधिकारी ने ईस्ट इंडिया कंपनी को एक डिस्पैच भेजकर कहा कि जो लोग मर रहे हैं उनमें तो आप लोगों को कोई दिलचस्पी नहीं होगी लेकिन यहां अगर आप एक नहर बनाएंगे तो आपको सिंचाई का कर मिलना शुरू हो जाएगा और अकाल से लोग निपट सकेंगे। तो आज जो हम एक बहुत प्रिय विभाग का नाम सुनते हैं-पी.डब्ल्यू.डी. और उसके आगे 'सी' भी लग जाता है, हमारे दिल्ली में सी.पी.डब्ल्यू.डी. तब वह नहीं बना था देश में। कोई इंजीनियर नहीं था, कोई विभाग नहीं था पब्लिक वर्क्स करने वाला। लेकिन इस अंग्रेज़ ने वहां के लोगों को इकट्ठा कर के पूछा था कि तुम लोग पानी का काम बहुत अच्छा जानते हो तो क्या ये नहर बना सकते हो? 200 किलोमीटर की यह नहर आज जिसको हम अनपढ़ कहते हैं उस समाज ने अंग्रेजों के सामने कागज़ बिना ड्राईंग बोर्ड के, कोई यंत्र नहीं थे, इसको उन्होंने निकाल के रखा। कागज़ पर नहीं मन में उकेरा और फिर ज़मीन पर बनाया। उसमें उनको एक नदी
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