के प्रयोगों को बढ़ावा दे रहे थे कि हमारे यहां के जो लोग अनपढ़ माने जाते हैं वे बाक़ायदा इंजीनियर हैं, सिविल इंजीनियर हैं और उससे ये देश चलना चाहिए, वह धारा एकदम कट गई। उन सबको ब्लेक लिस्ट किया गया और साफ़-साफ़ यह कहा गया कि जो लोग हमारे एजेंट हैं उन्हीं को ये सब पढ़ाई पढ़ानी चाहिए। उनको और कोई चीज़ आती हो तो आए हमारे लिए वे अनपढ़ हैं। इस तरह से वह रस्सी तब कटी लेकिन फिर रस्सी हम कभी जोड़ नहीं पाए।
मैंने जो कुछ 20 साल में काम किया तो मुझे ऐसा लगा कि जब अंग्रेज़ आए तो हमारे देश में करीब 20 लाख से 25 लाख तालाब थे जिनको अंग्रेज़ी में वॉटर बॉडीज़ वग़ैरह कहा जाता है। जैसे अभी उन्होंने बताया कि हर चीज़ का नंबर चाहिए। हमारे यहां वॉटर बॉडीज़ शब्द नहीं चलता था। हर तालाब का नामकरण होता था क्योंकि वह जीवन देता है, इसलिए वह खुद जीवंत है। कभी उसको नापकर नंबर नहीं दिया। उस पर कहावतें क़िस्से कहानियां। आप तो भोपाल में बैठे हैं। भोपाल के तालाब को लेकर जो कहावतें बनी उसमें गर्व के बदले घमंड तक आ गया। ताल में भोपाल ताल बाकी सब तलैया और उसके बाद लाइन कहना ज़रूरी नहीं है। तो ये इतनी ऊपर तक चीजें चली जाएं। जैसलमेर में एक बहुत सुंदर तालाब है 800 साल पहले बनाया था। ये रेगिस्तानी इलाक़ा है, जहां आज का साइंस कहता हैं कि सबसे कम पानी गिरता हैं। उसको सेंटीमीटर में नापते हैं और 16 सेंटीमीटर बताते हैं, वह जैसलमेर है। जहां सबसे ज़्यादा पानी गिरता है चेरापूंजी वह भी चौथी हिंदी में हम लोग पढ़ते हैं। वहां भी पानी का काम, यह समाज जानता था, और जहां सबसे कम गिरता है वहां भी। दोनों में से किसी भी समाज के हिस्से ने ये शिकायतें नहीं की कि तुमने हमको बहुत कम पानी दिया या तुमने हमको बहुत पानी दिया है। जो दिया है उसके इर्द-गिर्द हम
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