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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/३३

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अनुपम मिश्र

इन तीनों तालाबों ने अपने में पानी समेट कर गांव में सुख बांटने का जो रास्ता खोला था उसके प्रति गांव ने अपना आभार भी जताया। उस पुस्तक में वर्णित तालाबों के नामकरण की परंपरा को सबसे पहले जीवित किया गया। तीनों तालाबों के गुण और स्वभाव को देखते हुए एक सादे और भव्य समारोह में इनका नामकरण किया गया। पहले तालाब का नाम रखा गया देवसागर, दूसरे का नाम फूलसागर और तीसरे का नाम अन्नसागर। पहले दो तालाबों से समाज के लिए पानी न लेने का नियम बनाया गया। फूलसागर के आसपास अच्छे पेड़-पौधे जैसे सफ़ेद आकड़ा, बेलपत्र के पौधे और बग़ीची आदि लगाई गई। देवसागर की पाल पर छतरी, पनघट, पक्षियों के लिए चुगने का स्थान और धर्मशाला आदि स्थापित की गई। तीसरे सबसे बड़े तालाब से गांव की ज़रूरत के मुताबिक़ सिंचाई की व्यवस्था फिर से खड़ी की गई। पहले दो तालाबों से अपने लिए नहीं, लेकिन पशु-पक्षियों, पौधों के लिए पानी लेना और अन्नसागर से अपने लिए पानी निकालना तय किया गया। अपने उपकार और परोपकार का एक सुंदर ढांचा फिर खड़ा हो सका।

गांव में खेती की परिस्थिति कुछ सुधर चली थी, लेकिन किसानी केवल खेती पर नहीं टिकती। पशुपालन उसका एक मज़बूत आधार होता है। लापोड़िया का गोचर पूरी तरह से उजड़ चुका था। देखरेख के अभाव में गांव की यह सार्वजनिक भूमि अब किसी की नहीं रही थी। गोचर की घास तो छोड़िए, वहां के पेड़ भी कट चले थे।

गांव की जो सार्वजनिक बुद्धि तालाबों को सुधारने में लगी थी, अब उस बुद्धि ने गोचर को भी सुधारने का निश्चय किया। फिर से छोटी-छोटी बैठकें शुरू हुईं, कुछ मोटे-मोटे निर्णय लिए गए। अब गोचर में कोई कुल्हाड़ी लेकर नहीं जाएगा, घास नहीं खोदी जाएगी। वन्य जीवों को नहीं

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