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गोचर का प्रसाद बांटता लापोड़िया


कि गोचर में बरसने वाले पानी को वहीं-के-वहीं भीतर डालकर इसकी बरसों पुरानी प्यास बुझानी चाहिए और यह काम कुछ इस ढंग से हो सके कि न पशु रुकें और न रास्ता। गोचर खुला रखा जाए, पानी इस प्रकार से रोका जाए कि गांव का भूमिगत जल भी बढ़े और फिर नमी बढ़ने से गोचर हरा-भरा बने।

गोचर की सार-संभाल करने की इच्छा रखने वाले इन लोगों के पास अपने खेतों में पानी के प्रबंध का, सिंचाई का, नमी फैलाने का अनुभव तो पीढ़ियों से था। लेकिन गोचर खेत नहीं है। इसमें घास, झाड़ी, पेड़-पौधे पनपाने के लिए अब जो कुछ भी तरीक़ा अपनाना था, वह उनके हाथ में नहीं था। इसका एक कारण तो यह था कि गोचर में इससे पहले ऐसा कुछ करने की ज़रूरत नहीं पड़ी थी। उन्हें गोचर पीढ़ियों से हरा-भरा मिला था। लेकिन पिछले दौर में यह सब उजड़ गया था, उसमें कोई नई युक्ति लगाए बिना पानी ठहरने वाला नहीं था।

किसानी के अनुभव ने इतना तो बता ही दिया था कि गोचर में पानी को ठहराना ज़रूरी नहीं है। पानी का संग्रह तालाब में होता है। यहां तो वर्षा के दौरान तुरंत बह जाने वाले पानी को थोड़ी देर के लिए थामना है। पूरा पानी रोक लें तो घास अच्छी नहीं होती। प्रकृति को इतनी नमी भर चाहिए कि वह गोचर भूमि में घास की कोमल जड़ें जमा सके। एक बार घास जम जाए तो उसे बाद की वर्षा में फिर इतना पानी, इतनी नमी चाहिए कि वह सूरज के प्रकाश के साथ इस नमी को जोड़कर घास को और ऊपर उठा सके।

गोचर में क्या नहीं करना चाहिए और क्या-क्या करना है-इन दोनों का पूरा ध्यान रखकर 'बनाजी' ने पहली बार चौका शब्द खोज निकाला। लेकिन जब इस चौका पद्धति को गोचर में उतारा तो चौके की चार

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