पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/३७

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अनुपम मिश्र


भुजाओं में से एक भुजा हटा दी। अब यह चौका एक बड़ी भुजा और दो छोटी भुजाओं का रूप ले बैठा। संभवतः गोचर विकास के इतिहास में यह 'बनाजी' की देन की तरह दर्ज होने लायक घटना घटी थी। इस ढांचे में अब तीन भुजाएं और दो कोने थे। लेकिन वर्षा में जब पानी भरेगा तो यह एक लंबी आयत यानी चार कोनों का रूप ले लेगा। इसीलिए नाम चौका ही रहा।

उजड़ चुके गोचर को फिर से ठीक करने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ-साथ पूरी सावधानी बरती गई। ये युवक गांव के बुज़ुर्ग लोगों के साथ पूरे गोचर में दो-चार बार घूमे। इससे पता चला कि ढाल किस तरफ़ है, कितनी है। फिर देखना था कि सारे गोचर में चौका बन जाने के बाद उनमें से बहने वाला पानी निकल कर किस जगह आएगा। इस अतिरिक्त पानी को वहां किसी तालाब या नाड़ी में डालना था। जहां पशु चरें, वहीं पास में पानी चाहिए। यदि पानी दूर हुआ तो दोपहर को पानी पीने दूर जाना पड़ेगा और फिर दुबारा वापसी कठिन होगी।

बुज़ुर्ग लोगों के साथ गोचर घूमने से ये सब बातें अच्छी तरह से ध्यान आ गई थीं। तब फिर कागज़ पर एक कच्चा नक्शा बनाया गया। फिर गोचर में काम शुरू करने से पहले इस नक्शे के अनुसार ज़मीन पर भी निशान लगाए गए। कहां से कितनी मिट्टी उठेगी और कहां कैसे पड़ेगी, इसे देखा परखा गया। खुदाई और पटकाई वाली जगह में कोई पांच फुट का अंतर छोड़ा, ताकि पटकाई से बनी मेड़ या दीवार पर पानी का दबाव न पड़े और यहां की मिट्टी भी धीरे-धीरे खिसककर खुदाई वाली चौकड़ी में वापस न भर जाए। अंतर और अंतरा शब्द सभी ने सुना है लेकिन यहां अंतरा के साथ संतरा शब्द भी वापस आया है। अंतरा चौकड़ी और मेड़ के बीच का अंतर है और संतरा खुदाई की जगहों के बीच छोड़ी गई दूरी को कहते हैं। इसका पूरा ध्यान रखा गया।

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