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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/३९

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अनुपम मिश्र


दादा, काका, पिता और मां का साथ दिया। फिर पुलिस आई, कलेक्टर आए, छोटे-बड़े अधिकारी, पटवारी आए। सबने दोनों पक्षों के साथ बैठकर सारी परिस्थिति समझी। गोचर में पेड़ काटने का ठेका निरस्त किया गया। उसके बदले तय हुआ कि गोचर के लिए नुकसानदेह पेड़ विलायती बबूल ही काटा जाएगा। धरती का अच्छा काम किया तो पुण्य मिला और गोचर बच गया।

इस बैठक में निर्णय लिया गया कि गोचर पर से क़ब्ज़े भी हटेंगे। पटवारी ज़रीब लेकर इस काम में आगे आए। गांव के नक्शे के आधार पर पूरी नपाई हुई और इसमें न रिश्तों का ध्यान रखा गया और न दोस्ती का। लक्ष्मणजी ने पूरे प्रेम के साथ, लेकिन पूरी दृढ़ता से बता दिया था कि दोस्ती सिर्फ गोचर से है, क्योंकि इस गोचर से पूरे गांव की खुशहाली जुड़ी है।

बरसों का क़ब्ज़ा छुड़ाना आसान काम नहीं होता। जिसका क़ब्ज़ा हटाया जाता है, उसके मन में बहुत कड़वाहट आ जाती है। इस कड़वाहट को दूर करने के लिए गोचर में ही पूरे गांव का सामूहिक भोज रखा गया। पूरी के साथ सीरा, हलवा परोसा गया। गांव के 200 घरों से कोई 400 लोगों ने भोजन किया। सहभोज में परोसे गए मीठे सीरे ने सारी कड़वाहट मिटा दी।

इसी भोज के बाद गोचर से विलायती बबूल हटाने का काम शुरू हुआ। सभी लोग जानते हैं कि गोचर गांव के पशुओं के चरने की जगह है। लेकिन पिछले दौर में गोचर के पेड़ कट गए थे, घास खोद ली गई थी। फिर इस तरह की ग़लती को छिपाने के लिए सूखे और उजड़े गोचरों में यहां-वहां हरा रंग बिखेरने के लिए, हरियाली दिखाने के लिए कुछ समय पहले विलायती बबूल का रोपण किया गया था। यह लापोड़िया के

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