है। इसीलिए धीरे-धीरे अब राजस्व के अधिकारी भी इस क्षेत्र में ग्राम विकास की योजनाओं में गोचर पर भी ध्यान देने लगे हैं।
राजस्व बोर्ड के अध्यक्ष और ग्रामीण विकास सचिव से लेकर कई ज़िलों के कलेक्टर, तहसीलदार, बी.डी.ओ. अब लापोड़िया के काम को एक आदर्श काम मानकर यहां सीखने आते हैं और फिर अपने-अपने क्षेत्रों में शासन की विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से इस कार्यक्रम को उठा रहे हैं। लापोड़िया के इस काम का प्रभाव अब उच्च स्तर पर बनने वाली नीतियों पर भी कुछ हद तक पड़ने लगा है। इसे अकाल राहत में भी शामिल किया जा रहा है। अब राज्य सरकार ने इसे ग़रीबी मिटाने वाले कार्यक्रम से जोड़ा है।
लापोड़िया के इस सफल प्रयोग ने कुछ और बातों की तरफ़ भी ध्यान खींचा है। सन् 1998 के बाद से देश के कोई आधे हिस्से में अकाल पड़ता रहा है। अनेक हिस्सों में औसत से आधी और कहीं-कहीं उससे भी कम वर्षा हुई है। इस भयानक परिस्थिति से निपटने के लिए अनेक संस्थाओं ने और फिर उनके प्रभाव से सरकारों ने भी वर्षा जल संग्रह के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई हैं और उन्हें पूरा करने के लिए कदम उठाए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने तालाबों को ठीक करने और नए तालाब बनाने की तरफ़ ध्यान गया है।
लेकिन गोचर विकास का यह काम बताता है कि तालाबों में तो पानी रोकना ही चाहिए, साथ-साथ इसी उद्देश्य को और आगे बढ़ाने के लिए गोचर की तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए। यह काम दो तरह से गांव को अकाल से लड़ने के लिए मज़बूत बनाता है। गांव में गोचर का क्षेत्रफल प्रायः तालाब के भराव से कई गुना ज़्यादा होता है। यहां वर्षा के एक मौसम में 8-9 इंच पानी एक बड़े भू-भाग में तेज़ी से बहकर बर्बाद जाने के बदले चौका पद्धति से एक कोने से दूसरे कोने तक धीरे-धीरे भूमि
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