पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/५९

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अनुपम मिश्र

प्रयत्न कर रहा है। गांव के पुराने झगड़े आपसी बातचीत से समाप्त हो चुके हैं। पुलिस और कचहरी के चक्कर लगाने के बदले अब लापोड़िया के लोग साल भर आने वाले त्योहारों में मिलकर नाचते-गाते हैं, गुलाल उड़ाते हैं। शहनाई और ढोल-नगाड़ों की आवाज़ सुनाई देती है। आनंद की इस वर्षा के बीच में आप किसी भी दिन पाएंगे कि गांव के बुज़ुर्ग–रामकरण दादा, कालू दादा, रामकरण मामा और उनके साथ अगली पीढ़ी के युवक-युवतियां आसपास और दूर के गांवों में निकल गए हैं, ताकि वहां भी प्रकृति के इस पूजन का काम प्रारंभ हो सके और वहां भी लापोड़िया की तरह तालाब, गोचर का प्रसाद आनंद से बंट सके। लापोड़िया में अच्छे विचारों से अच्छे कामों का श्रीगणेश हो चुका है।

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