जुलाई (2004) के पहले पखवाड़े में उत्तर बिहार में आई भयानक बाढ़ अब आगे निकल गई है। लोग उसे भूल गए हैं। लेकिन याद रखना चाहिए कि उत्तर बिहार उस बाढ़ की मंज़िल नहीं था। वह एक पड़ाव भर था। बाढ़ की शुरूआत नेपाल से होती है फिर वह उत्तर बिहार आती है। उसके बाद बंगाल जाती है। और सबसे अंत में-सितंबर के अंत या अक्तूबर प्रारंभ में-वह बांग्लादेश में अपनी आख़री उपस्थिति जताते हुए सागर में मिलती है। इस बार उत्तर बिहार में बाढ़ ने बहुत अधिक तबाही मचाई। कुछ दिन सभी का ध्यान इसकी तरफ़ गया। जैसा कि अक्सर होता है, हेलिकॉप्टर आदि से दौरे हुए। फिर हम इसको भूल गए।
बाढ़ अतिथि नहीं है। यह कभी अचानक नहीं आती। दो-चार दिन का अंतर पड़ जाए तो बात अलग है। इसके आने की तिथियां बिल्कुल तय हैं। लेकिन जब बाढ़ आती है तो हम कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं कि यह अचानक आई विपत्ति है। इसके पहले जो तैयारियां करनी चाहिए, वे बिल्कुल नहीं हो पाती हैं। इसलिए अब बाढ़ की मारक क्षमता पहले से अधिक बढ़ चली है। पहले शायद हमारा समाज बिना इतने बड़े प्रशासन के या बिना इतने बड़े निकम्मे प्रशासन के अपना इंतज़ाम बख़ूबी करना जानता था। इसलिए बाढ़ आने पर वह इतना परेशान नहीं दिखता था।