नर्मदा घाटी: सचमुच कुछ घटिया विचार
हत्या से कुछ दिन पहले नर्मदा सागर बांध का शिलान्यास करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था कि वे इन बड़े बांधों के पक्ष में नहीं हैं पर विशेषज्ञ उन्हें बताते हैं कि इनके बिना काम चलेगा नहीं। लेकिन अब कुछ विशेषज्ञ ही नेताओं, अखबारों और लोगों को बताने लगे हैं कि इन बड़े बांधों के बिना काम ज़्यादा अच्छा चलेगा। मध्यप्रदेश शासन में सिंचाई सचिव रह चुके एक प्रशासक ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर नर्मदा घाटी में बन रहे बड़े बांधों-सरदार सरोवर (गुजरात) और नर्मदा सागर (मध्यप्रदेश) की ओछी योजनाओं का ब्योरा दिया है और बताया है कि इन बांधों से होने वाले लाभ का जो दावा किया है वह पूरा होगा नहीं, इनके कारण उजड़ने वाले लोगों से जो वादा किया है वह निभाया नहीं जा सकेगा और कुल मिलाकर नुकसान इतना ज़्यादा होगा कि 21वीं सदी के विकास के लिए तैयार की जा रही नर्मदा घाटी कहीं बीस हज़ार साल पीछे न ठेल दी जाए।
गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और एक हद तक राजस्थान के विकास के लिए बन रहे ये भीमकाय बांध एक किस्म से अश्वमेध यज्ञ के घोड़े हैं। इनकी लगाम छूने तक का दुस्साहस किसी ने किया नहीं था। लेकिन यज्ञ को लेकर तीनों राज्यों के नेताओं और विशेषज्ञों में भारी मतभेद थे: