नर्मदा के पानी को लेकर झगड़ते रहे राज्यों को अब यह भी मालूम पड़ गया होगा कि नदी में उतना पानी नहीं बचा है जितने को ध्यान में रख कर ये सारी योजनाएं बनाई गई हैं। अनुमानित 280 लाख एकड़ फुट के बदले पिछले कुछ वर्षों का औसत 230 लाख एकड़ फ़ुट है। पानी की कमी के कारण ऊंचे बांध रीते रह जाएंगे। नदी के पनढाल (जलागम) क्षेत्रों में एक तो बड़े बांधों के कारण पश्चिमी मध्यप्रदेश का कोई 43,064 हेक्टेयर वन डूबेगा और बचा हुआ पनढाल इतनी बुरी तरह से नंगा किया जा चुका है कि यह अब बांधों में गाद भरने का ही काम करेगा। यों केंद्र सरकार ने विश्व-खाद्य संगठन से आए एम एल दीवान की अध्यक्षता में इन बांधों को ध्यान में रख कर नर्मदा के पनढाल का सर्वे और उसे भूक्षरण से बचाने, वनीकरण करने के सुझाव देने की समिति बनाई थी। समिति ने काम पूरा किया। सुझाव दिया कि यदि इन बांधों की उम्र बढ़ानी है तो बांध बनने से पहले ही पनढाल को हरा-भरा बना लेना चाहिए। खर्च आएगा कोई 1400 करोड़ रुपया। पर बांध वाले कहते हैं कि उनके पास इतना पैसा नहीं है। वे बांध बनाएंगे, बांध की सेहत का ख्याल कोई और रखे। कुल मिलाकर होगा यही कि इसका ख्याल कोई नहीं रखेगा और बांध बन जाएंगे। तब बरसात के दिनों में बाढ़ आएगी और अपने साथ मिट्टी बहाकर इन बांधों को भेंट करेगी। धीरे-धीरे इससे उस बिजली पर भी असर पड़ेगा जिसे बनाने के लिए यह सारा तमाशा खड़ा किया जा रहा है। लेकिन बांध वाले कोई खतरा नहीं मानते। अब तक बनाए गए सभी बांधों में साद भरी है, उनकी अनुमानित उम्र घटी है और इसलिए बांध बनाने वाले कम उम्र के बांधों के इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि चिरंजीव शब्द उन्हें पुसाता नहीं।
कुछ लोगों की राय है कि इन बांधों की कमजोरियां या कमियों का हल होगा, जवाब होगा। फ़िलहाल उन बातों को सामने रखना चाहिए जिन्हें उन्होंने अनदेखा किया है। लेकिन आज सिंचाई विभाग अपनी ग़लतियों
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