के बारे में कैसे सोचता है इसका एक उदाहरण है गुजरात में टूटा मोरवी बांध। विभाग के कुछ लोग आज भी पूरी ईमानदारी से मानते हैं कि मोरवी बांध तकनीक या प्रबंध की ग़लतियों के कारण नहीं, षड्यंत्र के कारण टूटा था। षड्यंत्र भी मामूली नहीं। अमेरिका ने अपने एक उपग्रह से संकेत भेज कर इस पर निशाना साधा था! लेकिन हमारी सरकार ने इस पर ज़ोरदार विरोध क्यों नहीं प्रकट किया? जवाब है कि पर्याप्त प्रमाण नहीं जुटाए जा सके थे। अगर यह सही है तो फिर पूछना चाहिए कि नर्मदा पर मोरवी से सौ गुने बड़े बांध क्यों बना रहे हो। क्या हमने अपनी राजनैतिक हैसियत इतनी मज़बूत कर ली है कि कोई देश अपने उपग्रहों से हमारे साथ फिर ऐसा खिलवाड़ नहीं कर पाएगा?
ख़ैर ग़लतियों की बात छोड़ें, अनदेखी को देखें। अनदेखी की सूची तो बहुत लंबी है। सबसे भयानक समस्या होगी उनाव की। यह शब्द अभी ज़्यादा नहीं चला है क्योंकि यह समस्या भी अभी उतनी नहीं उठी थी। उनाव यानी बाढ़ के समय पीछे पलट कर लगातार उठने वाला जलस्तर। उसे बांध वाले 'बैक वॉटर' कहते हैं। बड़े बांधों के कारण नदी का जलस्तर काफ़ी ऊपर उठ जाएगा। तब जब भी बाढ़ आएगी, पूर में बह रही नर्मदा में जो असंख्य सहायक नदियां और नाले मिलेंगे उन सबमें पानी का स्तर मुख्य धारा के बढ़ते जलस्तर के कारण लगातार अपने किनारे तोड़ कर आसपास के खेत, घर, रास्तों को अपने में लपेटेगा। अभी तक बांध वालों ने केवल मुख्य धारा के उनाव का थोड़ा बहुत अध्ययन किया है। पर सभी जानते हैं कि नर्मदा घाटी दोनों तरफ़ पहाड़ों से घिरी एक संकरी घाटी है। इसमें क़दम-कदम पर मिलने वाली सहायक नदियों के उनाव की कल्पना करते हुए भी डर लगता है।
दूसरी अनदेखी है इन भीमकाय बांधों के सरोवरों से इस क्षेत्र में भूकंप आने की आशंकाएं। कुछ लोगों ने पिछले दिनों कोयना बांध के भूकंप को उसके जलाशय के दाब से जोड़ा है। ज्यों-ज्यों सरोवर में
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