पास किस बात की कमी? पर यहां भी ऊंचाई में संयम ही दिखता है। देश के चारों कोनों से बदरीनाथ धाम जाने वाले तीर्थ यात्री हरिद्वार से दो दिन की कठिन यात्रा पूरी कर जब मंदिर पहुंचते हैं तो एक सुंदर, भव्य लेकिन छोटे से मंदिर को देख मुग्ध हो जाते हैं। जो समाज कवि कालिदास के शब्दों में पृथ्वी को ही माप सकने योग्य ऊंचे, विशाल हिमालय की गोद में पला-बढ़ा है, वह ऊंचाई के विषय में तो विनम्रता ही सीखेगा। वह किसकी ऊंचाई से होड़ लेना चाहेगा? पहाड़ के वास्तुशिल्प में सभी जगह यह बात बहुत प्रेम से अपनाई गई है। इसलिए उसके दो मंज़िले मकानों पर टिप्पणी करने का कम-से-कम हमें तो कोई हक़ नहीं, जिनके मैदानी शहरों में गिरते-पड़ते बेतुके बहुमंज़िले मकान धड़ाधड़ बनते ही चले जा रहे हों।
उत्तराखंड के मकानों की शुभचिंता यहीं खत्म नहीं होती। रिपोर्ट का कहना है कि गिर चुके मकानों को दोबारा बनाते समय 'भूकंप सह' क्षमता का काफ़ी ध्यान रखना पड़ेगा, जो मकान इस भूकंप की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए, उन्हें भी रिपोर्ट ने भविष्य के किसी और भूकंप की आशंका को देखते हुए 'भूकंप सह' बनाने पर जोर दिया है। रेखाचित्रों के माध्यम से रिपोर्ट ने अच्छे खड़े साबुत मकानों के 'दृढ़ीकरण' के बहुत ही कठिन हिंदी में बड़े ही सरल तरीक़े सुझाए हैं:
'भूकंप-प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि भवन की प्रत्येक मंज़िल में बाहरी चारों ओर दरवाज़े के सरदल से ऊपर और छत के नीचे चारों ओर दीवारों को बांधने हेतु एक बंधन-पट्टिका लगाई जाए। इसकी सुगम विधि इस प्रकार है:
दरवाज़े की सरदल और छतों के नीचे के साथ में 30 सेंटीमीटर चौड़ाई को भवन के चारों ओर प्लास्टर उखाड़ कर तार के ब्रुश से रगड़ कर पत्थर अथवा ईंटों को साफ़ कर लेना चाहिए। पत्थरों और ईंटों के
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