जातियां बसती हैं, कृषि के" (शब्द पर ज़ोर कौत्स्की का) "अधिक से अधिक विस्तृत क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर ले या उन पर अपना आधिपत्य जमा ले।"*[१]
यह परिभाषा बिल्कुल दो कौड़ी की है क्योंकि इसमें एकतरफ़ा, अर्थात् मनमाने ढंग से केवल जातियों के प्रश्न को अलग छांट लिया गया है (हालांकि जातियों का प्रश्न स्वयं भी और साम्राज्यवाद के प्रसंग में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है), इसमें मनमाने तथा ग़लत ढंग से इस प्रश्न का संबंध केवल उन देशों की औद्योगिक पूंजी के साथ जोड़ा गया है जो दूसरे राष्ट्रों पर आधिपत्य कर लेते हैं, और उतने ही मनमाने तथा ग़लत ढंग से कृषि प्रदेशों पर आधिपत्य करने के प्रश्न को सबसे आगे लाकर रख दिया गया है।
दूसरे प्रदेशों पर आधिपत्य करने की चेष्टा ही साम्राज्यवाद है- कौत्स्की की परिभाषा के राजनीतिक भाग का तात्पर्य यही है। यह बात सही है, पर बहुत अधूरी है, क्योंकि राजनीतिक दृष्टि से साम्राज्यवाद , आम तौर पर, हिंसा तथा प्रतिक्रिया की दिशा में एक चेष्टा होती है। परन्तु इस समय तो हमें इस सवाल के आर्थिक पहलू में दिलचस्पी है, जिसे अपनी परिभाषा में कौत्स्की ने स्वयं शामिल कर दिया है। कौत्स्की की परिभाषा की ग़लतियों को अंधा भी देख सकता है। साम्राज्यवाद की लाक्षणिक विशेषता औद्योगिक नहीं बल्कि वित्तीय पूंजी है। यह कोई संयोग की बात नहीं है कि फ्रांस में पिछली शताब्दी के नवें दशक के बाद से आधिपत्यकारी (औपनिवेशिक) नीति में जो अत्यधिक उग्रता आयी उसका कारण ठीक यही था कि वित्तीय पूंजी का विकास असाधारण तीव्र
- ↑ * «Die Neue Zeit», १९१४, २ (खंड ३२), पृष्ठ ९०९, ११ सितम्बर, १९१४ ; देखिये १९१५, २, पृष्ठ १०७ तथा उसके आगे के पृष्ठ।
१२७