पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१५५

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मंझोले ही नहीं बल्कि बहुत ही छोटे पूंजीपतियों और छोटे मालिकों को भी अपने अधीन कर लेता है, और दूसरी ओर दुनिया के बंटवारे तथा दूसरे देशों पर प्रभुत्व के लिए महाजनों के अन्य जातीय-राज्यीय गुटों के खिलाफ़ चलाये जानेवाले निरंतर उग्रतर होते हुए संघर्ष के कारण, सम्पत्तिवान वर्ग पूरी तरह साम्राज्यवाद के पक्ष में चले जाते हैं। साम्राज्यवाद के उज्ज्वल भविष्य के बारे में "आम" उत्साह, उसका दृढ़तम समर्थन तथा उसे सबसे आकर्षक रूप में पेश करना—ये हैं इस युग के लक्षण। साम्राज्यवादी विचारधारा मज़दूर वर्ग में भी प्रविष्ट हो जाती है। उसके और दूसरे वर्गों के बीच कोई चीनी दीवार नहीं होती। जर्मनी की आजकल की तथाकथित "सामाजिक-जनवादी" पार्टी के नेताओं को "सामाजिक-साम्राज्यवादी" ठीक ही कहा जाता है, अर्थात् जो बातें समाजवादियों जैसी करते हैं और काम साम्राज्यवादियों जैसे; परन्तु अबसे बहुत पहले १९०२ में ही हाबसन ने इंगलैंड में "फ़ेबियन साम्राज्यवादियों" के अस्तित्व को देख लिया था, जिनका संबंध अवसरवादी "फ़े बियन सोसायटी"¹⁰ से था।

पूंजीवादी विद्वान तथा लेखक आम तौर पर कुछ ढके-छुपे ढंग से साम्राज्यवाद की हिमायत करते हैं, वे उसके पूर्ण प्रभुत्व तथा उसकी गहरी जड़ों पर परदा डालने की कोशिश करते हैं, वे कुछ ख़ास बातों को और गौण महत्व की ब्योरे की बातों को ही सामने लाकर रखने की कोशिश करते हैं और "सुधार" की कुछ सर्वथा हास्यास्पद योजनाओं द्वारा, जैसे ट्रस्टों या बैंकों पर पुलिस की निगरानी आदि की योजनाओं द्वारा, बुनियादी बातों की ओर से ध्यान हटाने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी ऐसे निर्लज्ज तथा बेधड़क साम्राज्यवादी सामने आते हैं जिनमें इस बात को स्वीकार करने का साहस होता है कि साम्राज्यवाद की बुनियादी लाक्षणिकताओं में सुधार करने का विचार बिल्कुल बेतुका है।

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