पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१५९

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मार्क्सवादी होने का कोई दावा नहीं करते, साम्राज्यवाद को खुली प्रतियोगिता तथा जनवाद के मुकाबले पर खड़ा करते हैं, वगदाद रेलवे योजना की इसलिए निंदा करते हैं कि उससे झगड़े और युद्ध पैदा होते हैं, शांति की "सुखद कामनाएं" व्यक्त करते हैं, आदि। स्टाक तथा शेयर जारी करने से संबंधित अन्तर्राष्ट्रीय आंकड़ों के संकलनकर्ता ए॰ नेमार्क पर भी यही बात लागू होती है, जिन्होंने खरबों फ़्रांक की "अन्तर्राष्ट्रीय" प्रतिभूतियों का हिसाब लगाने के बाद १९१२ में आश्चर्य के साथ कहा, "क्या इस बात पर विश्वास करना संभव है कि शांति में विघ्न पड़ सकता है?.. इन बहुत बड़ी-बड़ी राशियों को देखते हुए, क्या कोई युद्ध छेड़ने का खतरा मोल लेगा?"*[१]

पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों का यह भोलापन कोई आश्चर्य की बात नहीं है; बल्कि यह बताना कि वे इतने भोले हैं और साम्राज्यवाद के अंतर्गत शांति की बातें "गंभीरतापूर्वक" करना उनके हित में है। १९१४, १९१५ और १९१६ में जब कौत्स्की इसी पूंजीवादी-सुधारवादी दृष्टिकोण को अपनाते हैं कि शांति के सवाल पर "सभी लोग सहमत हैं" (साम्राज्यवादी, नामधारी समाजवादी और सामाजिक-शांतिवादी), तो उनमें मार्क्सवाद की क्या बात बाक़ी रह जाती है? साम्राज्यवाद का विश्लेषण करने और उसके विरोधों की गहराइयों का रहस्योद्घाटन करने के बजाय हम उन्हें टाल जाने, उनसे कतरा जाने की एक सुधारवादी "कोरी इच्छा" के अलावा और कुछ नहीं देखते हैं।

कौत्स्की द्वारा साम्राज्यवाद की आर्थिक आलोचना का एक नमूना देखिये। वह १८७२ तथा १९१२ में मिस्र के साथ ब्रिटेन के निर्यात


  1. * Bulletin de l'Institut International de Statistique, खण्ड १९, ग्रंथ २, पृष्ठ २२५।

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