पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१८७

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5 स्पर्टकवादी–प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान स्थापित "स्पर्टक" लीग के सदस्य। युद्ध के आरंभ में जर्मन वामपंथी सामाजिक-जनवादियों ने क॰ लीब्कनेख़्त, रोज़ा लुक्जेम्बुर्ग, फ॰ मेहरिंग, क्लारा ज़ेत्किन इत्यादि के नेतृत्व में "इन्टरनेशनल" समूह की स्थापना की। यह समूह भी अपने को "स्पर्टक" लीग कहलाने लगा। स्पर्टकवादियों ने जनता में साम्राज्यवादी युद्ध के विरुद्ध क्रान्तिकारी प्रचार जारी रखा, और जर्मन साम्राज्यवाद की विस्तारवादी नीति और सामाजिक-जनवादी नेताओं की ग़द्दारी का पर्दाफ़ाश कर दिया। पर स्पर्टकवादी यानी जर्मन वामपंथी लोग सिद्धान्त और नीति की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समस्याओं तक के विषय में अपनी अर्द्ध-मेन्शेविक भ्रान्तियों से छुटकारा न पा सके : उन्होंने साम्राज्यवाद अर्द्ध-मेन्शेविक सिद्धान्त विकसित किया, मार्क्सवादी अर्थ में (अर्थात् पृथक् होने एवं स्वाधीन राज्य स्थापित करने सहित) राष्ट्रों के आत्म-निर्णय के अधिकार का सिद्धान्त अस्वीकार किया, साम्राज्यवादी युग में राष्ट्रीय स्वतंत्रता युद्धों की सम्भावनाओं से इन्कार किया, क्रान्तिकारी पार्टी का कम मूल्य प्रांका और आन्दोलन की स्वतःस्फूर्ति के आगे सिर झुका दिया। जर्मन वामपंथियों की ग़लतियों की आलोचना व्ला॰ इ॰ लेनिन कृत "जूनियस पैम्फ़्लेट", "मार्क्सवाद का व्यंग-चित्र तथा 'साम्राज्यवादी अर्थवाद'" और अन्य लेखों में शामिल है। १९१७ में स्पर्टकवादियों ने "स्वतन्त्रवादियों" की सेंट्रिस्ट पार्टी से हाथ मिलाया पर अपनी संगठनात्मक स्वाधीनता क़ायम रखी। नवंबर १९१८ में जर्मनी की क्रान्ति के बाद स्पर्टकवादियों ने "स्वतन्त्रवादियों" से विदा ली और उसी वर्ष के दिसंबर में जर्मनी कम्युनिस्ट पार्टी की नींव रखी।

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