पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/२१

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उद्योग में तो संकेंद्रण के बारे में कार्ल मार्क्स की शिक्षा निश्चित रूप से चरितार्थ हुई है ; अलबत्ता यह बात एक ऐसे देश पर लागू होती है जहां चुंगियों और लाने ले जाने के महसूलों के द्वारा इस उद्योग की रक्षा की जाती है। जर्मनी का खनिज उद्योग अब उस परिपक्वता की अवस्था में पहुंच गया है जब कि उसे जब्त कर लिया जाना चाहिए।"*[१]

एक ईमानदार पूंजीवादी अर्थशास्त्री भी- यद्यपि ऐसे लोग अपवाद के तौर पर हैं - इसी नतीजे पर पहुंचने के लिए मजबूर हैं। यह बात ध्यान देने की है कि ऐसा प्रतीत होता है कि वह जर्मनी को एक विशेष श्रेणी में रखता है क्योंकि वहां के उद्योग ऊंची चुंगियों द्वारा सुरक्षित हैं। किन्तु कारखानेदारों के इजारेदार संघों, कार्टेलों, और सिंडीकेटों इत्यादि के संकेंद्रण तथा निर्माण की रफ्तार इस परिस्थिति के कारण तेज़ ही होती है। इस बात को ध्यान में रखना बहुत महत्वपूर्ण है कि खुले व्यापार वाले इंगलैंड में संकेंद्रण इजारेदारी को भी जन्म देता है , यद्यपि कुछ बाद में और शायद दूसरे रूप में। प्रोफ़ेसर हेरमन लेवी ने "इजारेदारियां, कार्टेल और ट्रस्ट नामक अपनी विशेष खोजपूर्ण पुस्तक में जो ब्रिटेन के आर्थिक विकास सम्बंधी तथ्यों पर आधारित है , लिखा है :

"ग्रेट ब्रिटेन में कारखानों के बड़े आकार और उसके उच्च प्राविधिक स्तर में ही इजारेदारी की प्रवृत्ति छिपी है। इसका एक कारण यह भी है कि हर कारखाने में लगी पूंजी की मात्रा बहुत बड़ी है जिसकी वजह से नये कारखानों के लिए आवश्यक पूंजी की मात्रा बढ़ती जाती है और इसलिए उनको शुरू करना ज्यादा कठिन हो जाता है। इसके अलावा (और यह बात हमें और ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है ) संकेंद्रण


  1. * Hans Gideon Heymann, «Die gemischten Werke im deutschen Grosseisengerwerbe» ( जर्मनी में लोहे के बड़े उद्योग में सम्मिलित कारखाने - अनु०), स्टटगार्ट १९०४ (पृष्ठ २५६ , २७८)।

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