पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/३०

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और बड़ी फैक्टरी से समझौता कर लिया। परिणाम यह हुआ कि दो "तिहरे गठजोड़े" हो गये , इनमें से हरेक की पूंजी चार से पांच करोड़ मार्क तक हो गयी। और ये “गठजोड़े" एक दूसरे के “निकट" आते जा रहे हैं, कीमतों के बारे में उनकी “मिलीभगत" रहने लगी है , आदि ।*[१]

प्रतियोगिता बदलकर इजारेदारी बन जाती है। परिणामस्वरूप उत्पादन के सामाजीकरण की दिशा में बड़ी भारी प्रगति होती है। विशेष रूप से प्राविधिक आविष्कारों और सुधारों की प्रक्रिया का सामाजीकरण हो जाता है।

यह चीज़ कारखाने वालों के बीच उस पुरानी खुली प्रतियोगिता से बिल्कुल भिन्न है जो इधर-उधर बिखरे हुए रहते थे और जिनका आपस में कोई सम्पर्क नहीं होता था और जो एक अनजाने बाज़ार के लिए माल तैयार करते थे। संकेंद्रण अब इस हद तक पहुंच गया है कि सारे देश के, या जैसा कि हम आगे देखेंगे, बहुत से देशों के, यहां तक कि सारी दुनिया के कच्चे माल के सभी स्रोतों का ( जैसे लोहे के खनिज भंडारों का) मोटा-मोटा अनुमान लगाया जा सकता है। न केवल ऐसे तखमीने बनाये जाते हैं, बल्कि इन ठिकानों पर बड़े-बड़े इजारेदार संघ अपना क़ब्ज़ा भी जमा लेते हैं। बाज़ारों की क्षमता का भी एक मोटा तखमीना बनाया जाता है और संघ समझौता करके उन्हें आपस में “बांट" लेते हैं। होशियार कारीगरों को अपने हाथ में कर लिया जाता है , अच्छे से अच्छे इंजीनियरों को नौकर रख लिया जाता है। यातायात के साधनों पर क़ब्ज़ा कर लिया जाता है : जैसे अमरीका में रेलों पर और यूरोप और अमरीका में जहाज़ी कम्पनियों पर। अपनी


  1. * Riesser, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक , तीसरा संस्करण, पृष्ठ ५४७ तथा उसके आगे के पृष्ठ। अखबारों में (जून १९१६ के ) रिपोर्ट निकली है कि एक नया दानव ट्रस्ट बना है जो जर्मनी के रसायन उद्योग को एकबद्ध कसे जा रहा है।

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