पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/३७

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"बुनियादी उद्योगों में दानवाकार कारखानों के साथ-साथ, १९०० के संकट के समय , बहुत से कारखाने इस ढंग से भी संगठित थे जिसे आज अप्रचलित माना जायेगा, 'विशुद्ध'" ( संघों के बाहरवाले ) "कारखाने जो औद्योगिक तेज़ी की लहर के साथ उठे थे। क़ीमतों के गिरने और मांग के कम होने से इन 'विशुद्ध' कारखानों की हालत बड़ी डांवांडोल हो उठी थी, जब कि विशालकाय संघबद्ध कारखानों पर या तो इस संकट का बिल्कुल ही असर न पड़ा था, या फिर पड़ा भी था, तो बहुत ही थोड़े समय के लिए। इसका परिणाम यह हुआ कि १८७३ के संकट की तुलना में १९०० के संकट की वजह से उद्योगों का कहीं ज्यादा संकेंद्रण हो गया : १८७३ के संकट के कारण भी सबसे अच्छी तरह से लैस कारखानों का एक प्रकार का चुनाव हो गया था , किन्तु उस समय प्राविधिक विकास का स्तर नीचा होने के कारण यह चुनाव उन कारखानों को इजारेदारी की हालत में न पहुंचा सका जो संकट को सफलतापूर्वक पार कर आये थे। ऐसी स्थायी इजारेदारी उसकी अत्यंत जटिल प्रविधि, उसके व्यापक संगठन तथा उसमें लगी हुई विपुल पूंजी के कारण बहुत बड़े पैमाने पर लोहे तथा इस्पात और बिजली के आधुनिक उद्योगों के विशालकाय कारखानों में और इससे कम पैमाने पर इंजीनियरिंग उद्योग, धातु-उद्योग की कुछ शाखाओं, और यातायात आदि में पायी जाती है।"*[१]

इजारेदारी! "पूंजीवादी विकास की नवीनतम अवस्था का यह चरम रूप है। किन्तु यदि हम बैंकों की भूमिका पर ध्यान न दें तो आधुनिक इजारेदारियों की असली ताक़त और उनके महत्व का हमें बहुत ही अपर्याप्त, अधूरा और हलका अन्दाज़ा ही हो सकेगा।


  1. * Jeidels, पहले उद्धृत की गयी पुस्तक , पृष्ठ १०८ ।

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