पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/५०

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डर है कि राज्यीय इजारेदारी एक अप्रत्याशित दिशा से उनसे आगे निकल जायेगी। परंतु यह बताने की ज़रूरत नहीं कि यह भय , एक प्रकार से , एक ही दफ्तर के दो विभागों के मैनेजरों की प्रतिद्वंद्विता की अभिव्यक्ति से अधिक और कुछ नहीं है ; क्योंकि एक तरफ़ तो बचत-बैंकों के हाथों में जो अरबों की रक़म सौंपी जाती है उसपर अंततः वास्तव में इन्हीं बड़े- बड़े बैंकपतियों का क़ब्ज़ा रहता है, और दूसरी तरफ़, पूंजीवादी समाज में राज्यीय इजारेदारी उद्योगों की किसी एक या दूसरी शाखा में इन करोड़पतियों की आय को बढ़ाने तथा सुनिश्चित बनाने का एक साधन मात्र होती है, जिनका दिवाला निकलनेवाला होता है।

पुराने ढंग के पूंजीवाद का, जिसमें खुली प्रतियोगिता का बोलबाला था, नये पूंजीवाद में, जिसमें इजारेदारी का राज्य होता है, बदल जाना , और बातों के अतिरिक्त इस बात में व्यक्त होता है कि स्टाक एक्सचेंज का महत्व घट गया है। «Die Bank» नामक पत्रिका लिखती है : "स्टाक एक्सचेंज अब परिचालन का वैसा अनिवार्य माध्यम नहीं रह गये हैं जैसा कि वे पहले थे जबकि बैंकों में अधिकांश नये शेयरों को अपने ग्राहकों के हाथ बेचने की सामर्थ्य पैदा नहीं हो पायी थी।"*[१]

"'हर बैंक एक स्टाक एक्सचेंज होता है' और जो बैंक जितना ही बड़ा होता है और उसके हाथों में बैंक का कारोबार जितनी सफलतापूर्वक संकेंद्रित होता है, उतनी ही अधिक हद तक यह आधुनिक परिभाषा उसपर चरितार्थ होती है।"**[२] "जबकि पहले , उन्नीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में, स्टाक एक्सचेंजों ने अपनी जवानी के जोश में" (यह "छुपा हुआ" संकेत १८७३ में स्टाक एक्सचेंज के बैठ जाने , कम्पनियां खड़ी


  1. * «Die Banky, १९१४, १, पृष्ठ ३१६ ।
  2. **Dr. Oscar Stillich, «Geld- und Bankwesen», Berlin, 1907, पृष्ठ १६९।

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