में नौ नहीं बल्कि दो बहुत बड़े बैंकों के हाथों में, राकफेलर तथा मार्गन नामक अरबपतियों के बैंकों के हाथों में, ग्यारह अरब मार्क की पूंजी है।*[१] जर्मनी में «Disconto-Gesellschaft» बैंक में «Schaaffhausen scher Bankverein» के विलय के बारे में , जिसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं, स्टाक एक्सचेंज के हितों को व्यक्त करनेवाले मुखपत्र (Frankfurter Zeitung» ने निम्नलिखित शब्दों में टीका की:
"बैंकों के संकेंद्रण आंदोलन के कारण ऐसे संस्थानों का क्षेत्र संकुचित होता जा रहा है जिनसे ऋण मिल सकता है, और फलस्वरूप बैंकों के बहुत थोड़े से समूहों पर बड़े उद्योगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। उद्योगों तथा वित्तीय जगत के घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए ऐसी औद्योगिक कम्पनियों की कामकाज की स्वतंत्रता , जिन्हें बैंक की पूंजी की आवश्यकता पड़ती है, सीमित हो गयी है। इस कारण बड़े उद्योग इस बात को मिश्रित भावनाओं के साथ देखते हैं कि बैंक ज्यादा से ज्यादा बड़े पैमाने पर अपने ट्रस्ट बनाने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। वास्तव में हम कई बार बैंक का कारोबार करनेवाली बड़ी-बड़ी कम्पनियों के बीच ऐसे समझौतों की शुरूआत देख चुके हैं जिनका उद्देश्य प्रतियोगिता की शुरूआत को सीमित करना होता है।"**[२]
बार-बार यही कहना पड़ता है कि बैंक के कारोबार के विकास का अंतिम रूप इजारेदारी है।
जहां तक बैंकों और उद्योगों के घनिष्ठ संबंध का सवाल है, तो यही वह क्षेत्र है जिसमें बैंकों की नयी भूमिका शायद सबसे ज्यादा स्पष्ट रूप में अनुभव की जाती है। जब कोई बैंक किसी कारखानेदार की हुंडी का भुगतान करता है, या उसका चालू खाता खोलता है आदि, तो अलग-अलग
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