पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१२०

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[ ११९ कमल जिन को जो सारंग कृष्णचंद्र हैं लो दिपावह सारंग दीप ताकी पति दीति तासों घर जैहै। यह लोकोक्ति है कि दिया घर जैहै । सारंग नेह मनाबहु नाम मिलाबहु सारंग नाम कमल है कर चरन जिन के सारंग नाम अमर सो अलि बुलाबहु सारंग मुमताको नाम कुरंग हे कुरंग की उपकारिनि सारंग जो मैं तेरी सपी हौं भरति हौं जियावहु ॥ १ ॥ पयिनि सारंग एक लभारि । आपु- हि सारंग नाम कहावै सारँग बरनी वादि ॥ तामै एक छबीलो सारँग अध सारँग उनहारि। अध सारंग परिसकलई सारंग अध सारंग बिचारि ॥ तामहि सारंग सुत सोभित हैठाढी सारंग भारि । सूरदास प्रभु तुमहू सारंग बनी छबोली नारि ॥२॥ पद्मिनी इति । सपी की उक्ति नाइक सौ । सारंग मेघ तासु नाम धाराधर ताके मध्य के बरन राधा सों राधा आप वो सारंग स्त्री नाम कहावै जापै सारंग चंद सो सुप आधो चंद सों सो आधा जो है चंद्रमुष तापै सकलै सारंग जो हैं राकाससि सो आधी जानो जाय है ताही मुष में सारंग सुत हरिन सावक तद्वत नयन सो है ठाढी सारंग कहै सोभा के भार सों सूरदास-प्रभु तुमहूं सारंग सपी कहै है कि हे प्रभु तुमहूं रंगीले हो नारिहुँ छवीली है तातें मिलो ॥२॥ बिराजत अंग अंग रति बात। अपने कर करि धरे बिधाता षट षग नव जल- जात ॥ हे पतंग ससि बीस एक फनि and- mournamega ARI