पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१२७

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। .] १२६ ] बजावन हारे। गायन घर घर घेर चला- वत लोभ नचावन हारे ॥ चंचलता निर्तनि कटाक्ष रस भाव बतावत नीके। सूरदास ए रीझे गिरिधर मनमाने उनही के ॥८॥ स्याम रंग इति । हमारे नैनन स्याम के रंग में राचे हैं । सारँगरिषु घूघुट पट तातें निकसि निलज भये हैं आगे सुगम ॥८॥ राग विलावल। देषो सोभा सिंधु समात । स्यामा स्थाम सकल निसि रस बस जागे होत प्रभात ॥ लै पाहनसुत कर सनमुष है निरपि निरषि मुसुक्यात । अवर जु सुभग बेद जलजातक कनक नीलमनि गात ॥ उदित जराउ पंच तिय रवि ससि किरिनि तहां सुदुरात। चंचल षग बसु अष्ट कंज दल सोभाबरनि न जात॥ चारि कीर पर पारस चिट्ठम आजु अली- गन पात। सुष की रासि जुगुल मुष ऊपर सूरदास बलि जात ॥६॥