पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/५४

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[ १९ । 12 बज में करी कौन उपाइ । भई जो बिपरीत ताको समुझ सूल सुभाइ ।। चार पद के पत सु भूषन ते निकासी संक । तितिपीउर डार दीनी प्रान बारी रंक ॥रटत सारंग ते निकासी नागसमर मिलाइ। डार दीनी सुमुष तिनके कहा धो चित चाइ ॥ यहै चिंता दहै छाती कामघाती बोर । करत है पर संघ काहे समुझ ताकत तीर ॥ ५३ ॥ उक्ति नाइका की सपी से कै हे सषी वृज में का उपाइ कीजिये जो बिपरीत भई है ताको सूल समुझ चौपद पसु ताके पति शिव भूषन ससि को नाम ससांक कहै ताते संक निकास तिपीपी छपी कहै गोपीन के उर में डार दीनो प्राणवारी रंक सारंग पपीहा जो पी पी रटत है सो नाग नाम अहि समर रन मिलि अहिरन भए तिन के मुप में डारो है का पी पी पुकारती इहि चिंत छाती जरत है तापर काम जो घाती है करत है पर- संष सत्रु की संका तीर कहै बान समुझ के यामें चिन्ता संचारी पर पर- संषा अलंकार लच्छन । दोहा चिंता जो प्रिय बस्तु की, करै चाह मन माहि । परसंष्या एक थल बरज, दूजे ठहरत जाहि ॥१॥५३॥

भूसुत आइ गो एहि बेर । लेन

सुत सुत हाइसजनीसुमुझ आप सबेर॥ पुंड सुत पित तात हो के लेहिगोरी