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साहित्यालाप


को प्राप्त हुई है । वह एक प्रकार से अनादि है। नहीं कह सकते कब से मानव-जाति उसके सबसे पहले रूपवाली उसकी पूर्ववर्तिनी भाषा बोलने लगी। वर्तमान हिन्दी की प्रथमावस्था का सबसे प्रतिष्ठित ग्रन्थ जो अब तक उपलब्ध हुआ है पृथ्वीराज-रासो ही है । अतएव निश्चयपूर्वक केवल इतना ही कहा जा सकता है कि वर्तमान हिन्दी का बीज-वपन चन्दबरदाई के समय में, या उसके कुछ पहले, हुआ। चन्द के पूर्ववर्ती भी कुछ कवियों और उनके काव्यों का पता चलता है। पर, चन्द के और उनके स्थितिकाल में बहुत अधिक अन्तर नहीं।

२-प्रकुरोद्भव

बोने के अनन्तर बीज से अंकुर निकलता है। चन्द बरदाई आदि कवियों ने जिस बीज को बोया उससे अंकुर तो शीघ्र निकल आया, परन्तु पत्तियां बहुत देर में निकलीं। जिस हिन्दी में आज कल समाचारपत्र और पुस्तकें लिखी जाती हैं उसके उद्भव तक हिन्दी में प्रायः काव्य-ग्रन्थों ही की उत्पत्ति हुई । संख्यातीत ग्रन्थ बने; पर बहुत करके सब पद्यात्मक । भक्त कवियों ने अपने अपने उपास्य देवता पर कविता की। राजाश्रित कवियों ने अपने अपने आश्रयदाता की रुचि के अनुकूल श्रृंगार या वीररसात्मक काव्य निर्माण किये । किसी ने अलंकारशास्त्र पर लिखा, किसीने नायिका भेद पर । सब की प्रवृत्ति केवल कविता ही की ओर रही। सात आठ सौ वर्ष तक यही हाल रहा। हिन्दी का अंकुर निकला तो सही;