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हिंदी की वतमान अवस्था


पर वह अंकुर ही रहा । वह पुष्ट ज़रूर होता गया; पर उसे अपनी अगली अवस्था की प्राप्ति बहुत काल के अनन्तर हई।

३–पत्रोद्गम

अङ्गरेज़ी शासन की कृपा से जब शिक्षा का प्रचार बढ़ा और अन्य भाषाओं में अच्छे अच्छे समाचारपत्र और पुस्तकें निकलने लगीं तब हिन्दी के दो चार हितचिन्तकों का ध्यान अपनी मातृभाषा की हीनता की ओर गया । अतएव उन्होंने उसे उन्नत करने के इरादे से प्रचलित प्रणाली की हिन्दी में काव्य, नाटक और इतिहास आदि की पुस्तकें गद्य में लिखनी और समाचारपत्र तथा सामयिक पुस्तकें निकालनी आरम्भ कीं। उस समय मानो हिन्दी के अंकुरित पौधे में, चिरकालोत्तर पत्रोद्गम हुआ । जो अंकुर सैकड़ों वर्ष तक प्राय: एक ही रूप में था उसमें पत्तियां निकल आई। उसके भी पहले यद्यपि कलकत्ते के फोर्ट-विलियम में हिन्दी की पूर्वागत अवस्था परिवर्तित करने की चेष्टा हुई थी, तथापि वह विशेष फलवती नहीं हुई ।नये ढंग की दो एक पुस्तकें निकलने ही से हिन्दी का अवस्था परिवर्तन नहीं हो सकता।

४-वर्तमान अवस्था

हिन्दी के जिस नये पौधे में आज से तीस पैंतीस वर्ष पहले केवल दो चार कोमल कामल पत्ते दिखाई दिये थे वे अब, इस समय, अनेक पल्लव-पुञ्जों से आच्छादित हैं । यद्यपि उसमें अब तक शाखा-प्रशाखाओं का प्रायः अभाव है; यद्यपि उसका तना अभी बहुत पतला और कमज़ोर है। यद्यपि उसमें