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साहित्यालाप


फूल और फल लगने में अभी बहुत देरी है--तथापि वह बढ़ रही है और आशा है कि किसी समय उसके अङ्ग-प्रत्यङ्गों की पूर्ति और पुष्टि भी देखने को मिलेगी। हिन्दी की वर्तमान अवस्था को देख कर यही अनुमान होता है।

५---साहित्य का महत्व

ज्ञान के कई विभाग किये जा सकते हैं । विश्व में जो कुछ जानने योग्य है वह कई भागों में विभक्त किया जा सकता है। ऐसे प्रत्येक भाग की संज्ञा शास्त्र है।

आकाशस्थ ज्योतिर्मय पिण्डों से सम्बन्ध रखनेवाले शास्त्र का नाम ज्योतिषशास्त्र है। बिजली से सम्बन्ध रखने वाले शास्त्र का नाम विद्य च्छास्त्र है। मानव-शरीर से सम्बन्ध रखनेवाले शास्त्र को शारीरिक शास्त्र कहते हैं । तत्त्वज्ञान-सम्बन्धी शास्त्र दर्शनशास्त्र कहलाता है। इसी तरह आयुर्वेद-शास्त्र, जीवाणु-शास्त्र, कृषि-शास्त्र, वनस्पति-शास्त्र,ज्यामितिशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, रसायन-शास्त्र, अङ्कशास्त्र,शिल्पशास्त्र, संगीतशास्त्र, सम्पत्तिशास्त्र--यहां तक कि कीट-पतंग आदि से सम्बन्ध रखनेवाला शास्त्र भी है। सारांश यह कि इस विशाल विश्व में जो कुछ है वह सब अपने अपने वर्ग या विभाग के अनुसार पृथक् पृथक् शास्त्र-सम्बन्धिंनी सामग्री प्रस्तुत कर सकता है। मनुष्य की बुद्धि का जैसे जैसे विकाश होता जाता है वैसे ही वैसे ज्ञेय वस्तुओं का ज्ञान भी उसे क्रम क्रम से अधिकाधिक होता जाता है। ज्ञान-वृद्धि के साथ ही साथ शास्त्रों की संख्या भी बढ़ती जाती