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हिन्दी की वर्तमान अवस्था


हिन्दी के सौभाग्य से उसमें एक अच्छा वैज्ञानिक कोष वर्तमान है। उसे बने कई वर्ष हुए। उसकी सहायता से आज तक कितने वैज्ञानिक ग्रन्थों की सृष्टि हिन्दी में हुई है ? बँगला और मराठी में वैसा कोई कोष नहीं। तथापि इन भाषाओं की पुस्तकें बेचनेवाले किसी भी प्रतिष्ठित दूकानदार या प्रकाशक के यहां प्राप्य पुस्तकों की सूची यदि आप देखेंगे तो आपको अनेक वैज्ञानिक पुस्तकों के नाम मिलेंगे । इससे सिद्ध है कि यह काम प्रारम्भ में बिना कोष की सहायता के भी हो सकता है। हिन्दी-साहित्य अभी अत्यन्त हीनावस्था में है । उसकी एक भी शाखा अभी तक नाम लेने योत्य समृद्ध नहीं और, किसी भी वृहत्कोषमें साहित्य की सब शाखाओं के शब्द होने चाहिए। अतएव जब सब प्रकार के शब्दों की सृष्टि ही नहीं हुई तब बहुत बड़ा और पूर्ण कोष कैसे बन सकेगा ? अनेक महत्त्वपूर्ण शब्दों के उदाहरण कहां से आवेंगे ? इस दशा में यदि कोई कोष बनेगा भी तो उसमें संख्यातीत शब्दों की कमी रह जायगी। जब उन शब्दों की सृष्टि होगी तब या तो एक नया ही कोष बनाना पड़ेगा या पुराने कोष का सर्वांगीण संशोधन करना पड़ेगा।

यही हाल व्याकरण का भी है। बिना एक बहुत बड़े व्याकरण के भी हिन्दी के साहित्य की वृद्धि में, अभी इस समय, विशेष बाधा नहीं उपस्थित हो सकती । कल्पना कीजिए कि एक मनुष्य ऐसा है जो न तो हिन्दी का अच्छा