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साहित्यालाप

मेरे इस कथन का यह तात्पर्य नहीं कि हिन्दी में सर्वाङ्गपूर्ण ब्याकरण और कोश न बनें ! अवश्य बनें । उनके बनने से हिन्दी-साहित्य के एक अङ्ग की पुष्टि अवश्य होगी और हिन्दी लिखने और सीखनेवालों को लाभ भी होगा। मेरे कहने का मतलब सिर्फ़ इतना ही है कि बिना एक बृहत्कोश और बृहद्-व्याकरण के भी वर्तमान हिन्दी-साहित्य के अन्यान्य आवश्यकीय अङ्गों की साधारण उन्नति हो सकती है।

९---इतिहास और जीवनचरित

हिन्दी-साहित्य के किस किस अङ्ग की कमी पर खेद प्रकट किया जाय ! एक भी अङ्ग तो परिपुष्ट नहीं । साहित्य में इतिहास का आसन बहुत ऊंचा है। हिन्दी में ऐतिहासिक पुस्तकों का यद्यपि सर्वथा अभाव नहीं, तथापि नाम लेने योग्य दल पांच भी ऐसी पुस्तकें हिन्दी में नहीं । मिस्टर आर० सी० दत्त ने भारतीय सभ्यता का जो इतिहास अङ्गग्रेजी में लिखा है उसका अनुवाद, टाड साहिब के राजस्थान का का अनुवाद, और देहली के मुसल्मान बादशाहों के राजत्व काल से सम्बन्ध रखनेवाले दो एक फ़ारसी-ग्रन्थों के भी अनुवाद उल्लेख-योग्य हैं । पृथ्वीराजरासो पुरानी हिन्दी में है और पद्यात्मक है । वह यदि इतिहास कहा जा सकता हो तो उसकी भी गिनती साहित्य की इस शाखा के अन्तर्गत हो सकती है । हां, सोलड़क्यों का इतिहास अवश्य नाम लेने योग्य है । वह बड़ी खोज और श्रम से लिखा गया है। इनके सिवा और भी कुछ ऐतिहासिक पुस्तकें हिन्दी में हैं। परन्तु हिन्दी