पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७४
साहित्यालाप


विशेष मात्र मानी गई है । परन्तु रिपोर्ट के नक्शों में उर्दू और हिन्दुस्तानी एक ही खाने में रख दी गई हैं।

मर्दुमशुमारी के सुपरिंटेंडेंट ब्लन्ट साहब ने इन प्रान्तों की भाषाओं के सिर्फ़ चार भाग किये हैं। यथा---

१ पश्चिमी हिन्दी।

२ पूर्वी हिन्दी।

३ बिहारी।

४ पहाड़ी।

पश्चिमी हिन्दी को उन्होंने चार शाखाओं या बोलियों में विभक्त किया है---(१) हिन्दुस्तानी (२) ब्रज की बोली (३) कन्नौजिया (४) बुंदेली । पूर्वी हिन्दी के उन्होंने दो ही विभाग किये हैं---(१) अवधी (२) बघेली । अब माननीय मुंशी असग़र अली खाँ साहब कृपा करके देखें कि जिस हिन्दी का आस्तित्व तक वे नहीं कबूल करते उसी हिन्दी को इन प्रान्तों की गवर्नमेंट यहाँ की प्रधान भाषा मानती है। मुंशी जी की प्यारी उर्दू, या हिन्दुस्तानी, उसकी एक बोली मात्र है । उर्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तानी नामों पर ब्लन्ट साहब ने बहुत कुछ बहस की है, और, अन्त में यह सिद्ध किया है कि उर्दू, हिन्दुस्तानी,हिन्दी और उच्च हिन्दी कोई जुदा भाषायें नहीं। वे एक ही भाषा के रूपान्तर हैं।

अच्छा, अब देखिए, देवनागरा अक्षरों का प्रचार इन प्रान्तों में कितना है और उनके मुकाबले में जिन फ़ारसी अक्षरों में उर्दू लिखी जाती है उनका कितना है। फ़ी सैकड़े कितने