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साहित्यालाप


वर्णमाला ही का प्रचार सबसे अधिक है। अतएव प्रजा के काम की जितनी पुस्तकें गवर्नमेंट देशी भाषाओं में प्रकाशित करती है उन सबको विशेष कर देवनागरी ही अक्षरों में प्रकाशित करना चाहिए।

रिपोर्ट तैयार करनेवाले सुपरिंटेडेंट साहब न मालम क्यों उर्दू भाषा और फ़ारसी अक्षरों की तरफ़ कुछ झुके हुए मालूम होते हैं। आपका करना है कि यद्यपि देवनागरी-लिपि ही को इन प्रान्तों के निवासी अधिक पसन्द करते हैं,तथापि जो आदमी फ़ारसी और नागरी दोनों लिपियां जानते हैं वे नागरी की अपेक्षा फ़ारसी लिपि में अधिक योग्यता रखते हैं । आप कहते है कि नागरी और फ़ारसी लिपि जाननेवालों में ५६ आदमी फ़ी सदी ऐसे हैं जो देव- नागरी की अपेक्षा फ़ारसी लिपि अधिक अच्छी लिख सकते हैं। इस हिसाब से फ़ारसी लिपि की अपेक्षा नागरी विशेष अच्छी तरह लिख सकनेवालों की संख्या फ़ी सदी ४४ ही हुई । इससे शायद आप यह अर्थ निकालना चाहते हैं कि जो लोग दोनों लिपियाँ जानते हैं वे फ़ारसी लिपि को विशेष महत्व की लिपि समझ कर उसीमें विशेष अभ्यास करते हैं । यदि आपका यही आशय हो तो हमारी राय में आपने भूल की है। हम तो यह समझते हैं कि जिन लोगों ने लड़कपन ही से उर्दू पढ़ी है और फ़ारसी लिपि का व्यवहार किया है उन लोगों ने भी अब पीछे से देवनागरी लिपि सीख ली है । परन्तु वे इस लिपि में