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विदेशी गवर्नमेंट और स्वदेशी भाषायें


उसे कोई ६० करोड़ सालाना कर देगी। पर ऐसे कालेज जिनमें बारिस्टरी, ऊंचे दर्जकी डाक्टरी आदि सिखाई जाय न खोलेगी अथवा न खोल सकेगी। इसका कारण खर्च की कमी बताई जा सकती है। परन्तु सम्भव है, असल बात कुछ और हो हो। यदि इन सब विषयों और विद्याओं की शिक्षा का प्रबन्ध यहीं इसी देश में हो जाता तो भिन्न भिन्न सरकारी महकमों में इस समय बड़े बड़े उहदों पर हिन्दुस्तानी ही हिन्दुस्तानी देख पड़ते। पर दृश्य बिलकुल ही इसका उलटा है। इस देश में अंग्रेजी राज्य का आरम्भ हुए वाई १५० वर्ष हुए । तथापि यहां पशु-चिकित्सा तक की उच्च शिक्षा देनेके लिए कोई कालेज नहीं। ऐसी शिक्षा प्राप्तकरके ठेठविलायत से ही अबतक विलायतवासी यहां आते रहे हैं और आते जाते हैं । वही यहां देवोपम सुख-समृद्धि का उपयोग करते हुए हमारे घोड़ों, गधा, गायों और भैसों आदि पशुओंँ का इलाज करते हैं।

इन पदों की प्राप्तिक लिए अबतक तो सरकार ने कोई विशेष बात हम लोगों के सुभीते की न की थी। पर अब न मालूम क्या समझकर उसने एक घोषणापत्र हाल ही में निकाला है। उसका सारांश नीचे दिखलाता है:-

गवर्नमेंट चाहती है कि कुछ भारतवासी युवक विलायत जायं और वहां पशु चिकित्सक शास्त्र का अध्ययन करें। जो लोग वहां इस शास्त्र का अध्ययन करके सर्टिफिकेट प्राप्त करेंगे उन्हें गवर्नमेंट अपने मुल्की पशुचिकित्सा-विभाग (सिविल वेटेरिनरी डिपार्टमेंट में ) जगह देगी। प्रारम्भ में उन्हें ३५०) मासिक