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कवि सम्मेलन


का वह उड्डान नहीं जो प्रकृति कवि की रचनाओं में प्रायः सर्वत्र पाया जाता है।

अतएव शिक्षा और अभ्यास की बदौलत कवित्व-बीजविर-हित जन भी थोड़ी-बहुत कविता कर सकते हैं। इस दशा में,आज-कल, कवियों की वृद्धि देख कर घबड़ाने की ज़रूरत नहीं। जो सुकवि होंगे वे कुछ कर दिखावेंगे। उनकी रचनाओं का आदर होगा। जो " हठादाकृष्टानां कतिपयपदानां रचयिता "होंगे वे कुछ ही दिनों में थक कर आप ही चुप हो जायँगे और उनकी रचना भी शीघ्र ही लोप को प्राप्त हो जायगी।

कोई २० वर्ष पहले समस्यापूरक कवियों पर कुछ लोग व्यड़्गय वाक्यों की बौछार करते थे। समस्यापूर्तियों से भरी हुई मासिक पुस्तकों की भी हँसी उड़ाई जाती थी। पर अब उर्दू के कवियों और मुशायरों की देखादेखी हिन्दी के भी कवियों के खूब सम्मेलन हो रहे हैं और समस्यापूर्तियों का भी तूफ़ान सा आ रहा है । कालेजों और स्कूलों के सालाना जलसों में, छात्रालयों में, नुमायशों में, डिस्ट्रिक्ट बोर्डों और कहीं कहीं म्यूनीसिपैलिटियों के अधिवेशनों तक मैं कवियों की कविताधारा प्रवाहित की जाती है । साहित्य-सम्बन्धिनी सभाओं और कवियों के स्वनिर्मित मण्डलों तथा परिषदों में तो कविता-पाठ और समस्यापूर्ति के बहाने भगवती वाग्देवी इतना प्रबल पराक्रम दिखाती हुई पधारती हैं कि प्रलयकाल की आंधी का जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है । उपहार और पुरस्कार का लालच इस झंझावात के वेग को और भी बढ़ा देता है । वह और भी बहुत कुछ करता है । वह विवाद बढ़ाता है, वैमनस्य उत्पत्र