पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/२५२

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१६ वक्तव्य

कानपुर के तेरहवें साहित्य सम्मेलन की स्वागतकारिणी समिति के सभापति की हैसियत से किया गया भाषण ]

तद्दिव्यमव्ययं धाम सारस्वतमुपास्महे ।

यत्प्रसादात्प्रलीयन्ते मोहान्धतमसश्छटाः॥१॥

करबदरसदृशमखिलं भुवनतलं यत्प्रसादतः कवयः ।

पश्यन्ति सूक्ष्ममतयः सा जयति सरस्वती देवी॥२॥

औपचारिक

प्यारे भाइयो,

कानपुर-नगर के निवासियों ने आपका स्वागत करने के लिए मेरी योजना की है। मुझे आशा दी गई है कि मैं आपका स्वागत करू। अतएव मैं आपका स्वागत करता हू; हृदय से स्वागत करता हूं; बड़े हर्ष, बड़े आदर और बड़े प्रेम से स्वागत करता हूं-

स्वागतं वो महाभागाः स्वागतं वोऽस्तु सज्जनाः

स्वागतं वो बुधश्रेष्ठाः स्वागतं वः पुनः पुनः

अनेक कष्ट और अनेक असुविधाये सहन करके आपने अपने दर्शन से हम लोगों को जो कृतार्थ किया है उसके लिए हम, कानपुर के नागरिक, आपके अत्यन्त कृतज्ञ हैं । हमारे प्रणयानुरोध की रक्षा के लिए, आपने यहां पधारने की जो कृपा की है तदर्थ हम आपको हार्दिक धन्यवाद देते हैं ।