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साहित्यालाप

मैं ही क्यों, इस श्रेयोवर्धक काम के लिए चुना गया, इसका कारण मैं क्या बताऊं। बताना चाहें तो वही महाशय बता सकते हैं जिन्हों ने इस निमित्त मेरी नियुक्ति की है। जो इस नगर का निवासी नहीं; रहने के लिए जिस के अधिकार में निज की एक फूस की कुटिया तक नहीं; वाहन के नाम से जिसके पास अपने दो शक्तिहीन, निर्बल और कृश पैरों के सिवा और कुछ भी नहीं-वह आपका स्वागत करके आपको आराम से कैसे रख सकता है? आप का आतिथ्य करने और आपको आराम से रखने की लौकिक सामग्री यद्यपि मेरी पहुंच के बाहर है, तथापि मेरे पास एक वस्तु की कमी नहीं। वह है आपके ठहरने के लिए स्थान। भगवान् मधुसूदन का हृदय इतना विशाल है कि युगान्त में समस्त लोक, विस्तार सहित, उसमें समा जाते हैं। परन्तु जब तपोधन नारदजी उनको दर्शन देने आये तब भगवान् के उस उतने विशाल हृदय में भी, मुनिवर के आगमन से उत्पन्न, आनन्द न समा सका; वह छलक कर बाहर बह निकला-

युगान्तकालप्रतिसंहृतात्मनो जगन्ति यस्यां सविकाशमासत।
तनौ ममुस्तत्रन कैटभद्विपस्तपोधनाभ्यागमसम्भवा मुदः॥

परन्तु, विश्वास कीजिए, आपको ठहराने के लिए मैंने अपने हृदयस्थल को भगवान् के हृदय से भी अधिक विशाल बना लिया है। आप वहां सुख से रह सकते हैं। मेरे जिस हृदय में आपके सम्बन्ध का मेरा भक्ति-भाव, अपनी समस्त सेना साथ लिए हुए, मुद्दतों से डेरा डाले पड़ा है वहां जगह