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वक्तव्य


को कुछ भी सन्तोषजनक और कुछ भी सुभीते का हो तो उसका श्रेय स्वागत-समिति के कार्यकर्ताओं, सम्मेलन के सहायकों और स्वयंसेवकों को है। रहीं त्रुटियां और न्यूनतायें सो उनका एकमात्र उत्तरदाता, अतएव सब से बड़ा अपराधी मैं हूं। उसके लिए जो दण्ड आप मुझे देना चाहे, निःसङ्कोच दें। क्योंकि अपनी असमर्थता को जानकर भी मैंने इस कार्य भार को अपने ऊपर ले लिया है । और जान बूझकर अपराध करनेवाला औरों की अपेक्षा दण्ड का अधिक अधिकारी होता है।

२-कानपुर की स्थिति ।

जिस नगर में आप पधारे हैं वह अभी कल का बच्चा है। न वह बम्बई और कलकत्ते की बराबरी कर सकता है, न लाहौर और लखनऊ की, न काशी और प्रयाग की, न भागलपुर और जबलपुर की । सौ डेढ़ सौ वर्ष पहले तो इस का अस्तित्व तक न था। १८०१ ईस्वी में जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अवध के नवाब वज़ीर से कुछ ज़िले पाये, जब उसने यहां पर एक मिलिटरी पोस्ट (Military Post) कायम किया-उसने इस जगह को अपनी छावनी बनाया- और कुछ फ़ोज यहां रख दी, तब से इसका नाम कम्पू पड़ा और वही कालान्तर में कानपुर हो गया। इस नगर के आस-पास जो मौजे थे अथवा हैं उनमें सीसामऊ सब से अधिक पुराना है और अब तक बना हुआ है । आठ सौ वर्ष से भी अधिक समय हुआ, कानपुर के आसपास का भू-भाग