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साहित्यालाप


कन्नौज के राजा जयचन्द्र के पितामह गोविन्दचन्द्र के अधिकार में था। वह कोटि नाम के परगने या तअल्लुक़ो के अन्तर्गत था। इसका पता एक दानपत्र से लगा है, जो कुछ समय पूर्व, इसी जिले के छत्रपुर नामक गांव में मिला था। उस में लिखा है कि ससईमऊ ( अर्थात् वर्तमान सीसामऊ ) गांव को गोविन्द-चन्द्रदेव ने साहुल शर्मा नाम के एक ब्राह्मण को विक्रम संवत, ११७७ में दे डाला था।

तब से इस प्रान्त में क्या क्या परिवर्तन हुए, इसका विश्वसनीय ऐतिहासिक वर्णन मेरे देखने में नहीं आया। जो कुछ ज्ञात है वह इतना ही कि जब से अँगरेजी छावनी यहां क़ायम हुई तभी से इस नगर की नोव पड़ी। नया होने पर भी व्यापार और व्यवसाय में यद्यपि इस नगर ने बड़ो उन्नति की है तथापि आज से कोई तीस पैंतीस वर्ष पूर्व, यहां दो चार मनुष्यों को छोड़ कर और कोई हिन्दी भाषा और हिन्दी-साहित्य का नाम तक शायद न जानता था । इस भाषा और इस भाषा के साहित्य के बीजवपन का श्रेय परलोकवासी पण्डित प्रताप नारायण मिश्र को है । उन्हीं के पुण्यप्रताप से आज कानपुर को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि हिन्दी-साहित्य की अभिवृद्धि के साधनों पर विचार करने के लिए आपने, मुड़िया-लिपि के इस दुर्भेद्य दुर्ग में, पधारने की कृपा की है।

यहां पर हिन्दो-साहित्य का बीज-वपन हुए यद्यपि थोड़ा ही समय दुआ तथापि मातृभाषा-भक्तों और साहित्य-सेवियां की कृपा से वह अङ्क,रित होकर शीघ्र ही पल्लवित होने के