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वक्तव्य

आविष्कियाओं ने भू-मण्डल के विज्ञानवेत्ताओं को चकित कर दिया है। उन्होंने विज्ञान-बल से यन्त्र-द्वारा यह बात प्रमाणित कर दी है कि हमारे उपनिषदों और वेदान्तादि शास्त्रों के सिद्धान्त निमूल नहीं। उनके अनुसार जो ब्रह्म या परमात्मांश प्राणिमात्रा में विद्यमान है वही उद्भिजों और जड़ पदार्थों तक में विद्यमान है। इस जड़-चेतनमयी सृष्टि में परमात्मा सर्वत्र ही व्याप्त है और सभी का पालन-पोषण, नियमन तथा नाश एक ही प्रकार के नियमों से होता है। सरस्वती नदी के तट पर, हज़ारों वर्ष पूर्व, हमारे ऋषियों, मुनियों और पूर्वजों ने जिस “सर्व खल्विदं ब्रह्म" के तत्व का उद्घाटन किया था, आचार्य बसु ने उसीकी सत्यता अपने आविष्कारों द्वारा प्रमाणित कर दी है। कितने परिताप की बात है कि उनके इस तत्व के निर्णायक ग्रन्थों में से, अब तक, किसी एकका भी अनुवाद हिन्दी में नहीं हुआ। हैकल नाम के नामी तत्ववेत्ता ने विकाशवाद, सृष्टिरचना आदि विषयों पर बड़े ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ रचे हैं। उसके एक ग्रन्थ का नाम है विश्वरहस्य ( Riddle of the Universe )। उसने इस ग्रन्थ में इस बात का निरूपण किया है कि यह सारा विश्व एकरसात्मक है; वह एक ही अद्वितीय तत्त्व का प्रसार है; उसकी जड़ में एक ही परम-तत्त्व का अधिष्ठान है । उसीके अन्तर्गत किसी अनिर्वचनीय शक्ति की प्ररेणा से उसका काम यथानियम होता है। इस प्रकार इस अनात्मवादी वैज्ञानिक ने भी विश्व में किसी परम तत्व